अंतरिम बजट और वोट ऑन अकाउंट दोनों ही कुछ महीनों के लिए होते हैं लेकिन दोनों के पेश करने के तरीके में अंतर होता है।
1 फरवरी 2019 को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल अंतरिम बजट पेश करेंगे। वित्त मंत्री अरुण जेटली का स्वास्थ्य बेहतर न होने के कारण पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। संसद का बजट सत्र 31 जनवरी से शुरू हो जाएगा जो कि 13 फरवरी तक चलेगा।
गौरतलब है कि यह मोदी सरकार के कार्यकाल का अंतिम बजट होगा। अंतरिम बजट में किसानों के मुद्दे को प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद है। इससे पहले फुल बजट पेश किए जाने की खबर आई थी, जिसका सरकार ने खंडन कर दिया था।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि पिछले साल किडनी ट्रांसप्लांट के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली मेडिकल चेकअप के लिए अमेरिका गए हैं। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद अरुण जेटली की पहली विदेश यात्रा है।
उन्हें पिछले साल अप्रैल में एम्स में भर्ती कराया गया था जहां पर वह डायलसिस पर थे। बाद में 14 मई 2018 को उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उस दौरान भी रेलवे और कोयला मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था।
वोट ऑन अकाउंट और आम बजट में अंतर: आम बजट एक पूरे वित्त वर्ष के लिए पेश किया जाता है जबकि अंतरिम बजट कुछ ही महीनों के लिए पेश किया जाता है। अंतरिम बजट के कुछ महीनों बाद नई सरकार की ओर से उसी वर्ष पूर्ण बजट भी पेश किया जाता है।
अंतरिम बजट (Interim Budget): लोकतांत्रिक देशों में चुनावी साल के दौरान सरकारें फुल बजट न पेश कर अंतरिम बजट पेश करती हैं। दरअसल यह बजट चुनावी वर्ष में नई सरकार के गठन तक खर्चों का इंतजाम करने की औपचारिकता होती है।
इस बजट में ऐसा कोई भी फैसला नहीं लिया जाता है, जो नीतिगत और जिसे पूरा करने के लिए संसद की मंजूरी लेनी पड़े या फिर कानून में बदलाव की जरूरत हो। इस बजट में डायरेक्ट टैक्स में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाता, हालांकि सरकारें इंपोर्ट, एक्साइज या सर्विस टैक्स में राहत दे देती हैं। आम तौर पर हर सरकार की अपनी राजकोषीय योजनाएं होती हैं और वह उसी के मुताबिक धन का आवंटन करती हैं।
अंतरिम बजट और वोट ऑन अकाउंट में अंतर: अंतरिम बजट और वोट ऑन अकाउंट में भी थोड़ा अंतर होता है। दोनों ही कुछ ही महीनों के लिए होते हैं।
हालांकि दोनों के पेश करने के तरीके में अंतर होता है। अंतरिम बजट में केंद्र सरकार खर्च के अलावा राजस्व का भी ब्यौरा देती है, जबकि लेखानुदान में सिर्फ खर्च के लिए संसद से मंजूरी मांगती है।