अगर आपको है, मांसपेशियों की थकान और कमजोरी तो ये ज़रूर अपनाएं।

अगर आपको है, मांसपेशियों की थकान और कमजोरी तो ये ज़रूर अपनाएं।

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म्यास्थीनिया का पहला लक्षण है थकान और कमजोरी।
समस्या बढ़ने पर निगलने और सांस लेने में परेशानी होती है।
म्यास्थीनिया रोग जानलेवा भी हो सकता है।

म्यास्थीनिया एक खतरनाक बीमारी है, जो धीरे-धीरे बढ़ती है। शुरुआत में इस रोग के लक्षण बेहद सामान्य हो सकते हैं, जैसे- सीढ़ी चढ़ते हुए थक जाना, चलने में सांस फूलना, आंखों में सूजन आदि। कई बार छोटी-मोटी शारीरिक मेहनत के बाद ही आप बहुत ज्यादा थका महसूस करने लगते हैं।

म्यास्थीनिया रोग का प्रभाव चेहरे और गर्दन पर ज्यादा दिखाई देता है। ज्यादातर ये रोग अनुवांशिक होता है मगर कई बार किसी इंफेक्शन के कारण या लंबे समय तक बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत के कारण भी ये रोग हो जाता है।

ब्‍लड में एसीटाइलकोलीन रेसेप्‍टर नामक केमिकल तत्‍व की कमी के कारण यह रोग होता है। यह केमिकल तत्‍व शरीर की मांसपेशियों को एक्टिव और एनर्जी से भरपूर बनाये रखता है।

इस तत्‍व की कमी के कारण मांसपेशियां ढीली और सुस्‍त हो जाती है, जिसके चलते थोड़ा सा चलने या छोटा-मोटा काम करने पर बहुत ज्यादा थकान का अनुभव होता है।

म्यास्थीनिया रोग कई बार जानलेवा हो सकता है। दरअसल अगर शुरुआत में ही लक्षणों को पहचान कर इसका इलाज सही समय पर न किया जाए, तो खाना खाने में और सांस लेने में कठिनाई और बढ़ जाती है और एक‍ स्‍थिति ऐसी आ जाती है कि मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है। इसलिए म्यास्थीनिया रोग के शुरुआती दिनों में ही इलाज की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर देना चाहिए।

म्यास्थीनिया रोग का मुख्य कारण सामने की चेस्‍ट के अंदर एक विशेष ग्रंथि यानी थाइमस ग्लैंड का आकार में बड़ा होना है। यह थाइमस ग्‍लैंड चेस्‍ट के अंदर दिल के बाहरी सतह पर होती है।

अक्सर इस थाइमस ग्‍लैंड में ट्यूमर होता है, जिसके कारण ये आकार में बड़ी हो जाती हैं। म्यास्थीनिया रोग के 90 प्रतिशत मरीजों में यह थाइमस ग्लैंड ही जिम्मेदार होता है, बाकी 10 प्रतिशत मामलों में इसके लिए ऑटो इम्यून रोग जिम्मेदार होते हैं।

प्रारंभिक अवस्था में म्यास्थीनिया में बालों में कंघा करने में दिक्कत महसूस होना।

बहुत ही हल्के सामान को उठाने पर थककर चूर हो जाना।

सीढ़ियों पर 2-3 कदम चढ़ने पर या साधारण चलने पर कठिनाई महसूस होना।

रोग बढ़ जाने पर आंखे की पलकें ऊपर की तरफ उठना बंद कर देना।

दोनों आंखों को काफी देर तक खुली रखना मुश्किल।

आंखों का पूरी तरह से बंद करना कठिन।

आंखों को केंद्रित करने की क्षमता खोना।

चेहरे का बिलकुल भावरहित व शून्य हो जाना।

होंठ बाहर की तरफ ज्यादा निकल आना।