अमेरिका के एक फैसले से भारत को हो सकता है बड़ा नुकसान, रोजगार पर भी संकट।
GSP के तहत अमेरिका द्वारा भारत से आयात को दी जा रही तरजीही बंद करने से औद्योगिक इकाइयों के समक्ष मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं और रोजगार का संकट भी पैदा हो सकता है।
कुछ समय पहले तक अमेरिका और चीन के मध्य ट्रेड वॉर गहराने का परिदृश्य उभर रहा था, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। बीते सप्ताह ट्रंप ने अमेरिकी संसद को एक पत्र के जरिये भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम प्रिफरेंस (जीएसपी) कार्यक्रम से बाहर करने के अपने इरादे से अवगत कराया।
इस कार्यक्रम के तहत अमेरिका द्वारा भारत से आयात को दी जा रही तरजीही बंद करने से भारत से निर्यात होने वाले कपड़े, प्रोसेस्ड फूड, फुटवियर, प्लास्टिक व इंजीनियरिंग उत्पाद, हैंड टूल्स जैसी औद्योगिक इकाइयों के समक्ष मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं और रोजगार का संकट भी पैदा हो सकता है।
यदि अमेरिका जीएसपी से भारत को बाहर करने के फैसले पर कायम रहता है तो 60 दिनों के बाद भारत का तरजीही व्यापार दर्जा खत्म हो जाएगा। वर्ष 1976 से जीएसपी व्यवस्था के तहत विकासशील देशों को दी जाने वाली आयात शुल्क रियायत के मद्देनजर करीब 2,000 भारतीय उत्पादों को शुल्क मुक्त रूप से अमेरिका में भेजने की अनुमति मिली हुई है।
इस व्यापार छूट के तहत भारत से किए जाने वाले करीब 5.6 अरब डॉलर के निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगता है। जीएसपी के तहत तरजीही के कारण अमेरिका को जितने राजस्व का नुकसान होता है, उसका एक चौथाई भारतीय निर्यातकों को प्राप्त होता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का तर्क है कि भारत अमेरिका पर बहुत अधिक शुल्क लगाने वाला देश है। ऐसे में अब अमेरिका भारतीय उत्पादों पर जवाबी शुल्क (मिरर टैक्स) लगा सकता है।
ऐसा लगता है कि भारत सरकार द्वारा विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों को यूजर डेटा को भारत में ही रखने के लिए नियम बनाने के मद्देनजर भी ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों के हित में शुल्क बढ़ाने का मन बनाया है।
तय है कि इस फैसले से भारत-अमेरिकी कारोबार के लिए नई चुनौतियां पैदा होंगी। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा वैश्विक कारोबारी सहयोगी है। वर्ष 2016-17 में भारत से अमेरिका को निर्यात 42.21 अरब डॉलर था, जो 2017-18 में बढ़कर 47.87 अरब डॉलर हो गया। इसकी वजह से व्यापार घाटे को लेकर अमेरिका की चिंता बढ़ी है।
इसमें भी कोई दोमत नहीं कि अमेरिका को भारत की जरूरत है और भारत को भी अपने आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अमेरिका का साथ चाहिए। जहां अमेरिका अब भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वहीं भारत दुनिया में सबसे तेज आर्थिक विकास दर वाला देश है। भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है। ऐसा विशाल उपभोक्ता प्रधान बाजार अमेरिका के लिए आर्थिक जरूरत बन गया है।
ऐसे में यदि अमेरिका 60 दिन के बाद जीएसपी व्यवस्था से भारतीय वस्तुओं को बाहर करता है तो इससे भारत के छोटे निर्यातकों तथा उनके द्वारा दिए जा रहे रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि भारत से अमेरिका को कुल निर्यात में जीएसपी के तहत निर्यात हिस्सेदारी करीब 11 फीसद है।
निर्यात संगठनों के फेडरेशन फियो ने कहा है कि जीएसपी के तहत लाभों के समाप्त होने के कारण ऐसी सुविधा प्राप्त भारतीय निर्यातकों को सरकार की वित्तीय मदद/ प्रोत्साहन की जरूरत होगी, तभी वे अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहेंगे।
बहरहाल, एक ओर जहां अमेरिका भारत को आयात में तरजीह देना बंद करने जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका और चीन के बीच जारी कारोबार वार्ता से दोनों देशों में ट्रेड वॉर के समाप्त होने की संभावना बन गई है। हालांकि यह स्पष्ट दिख रहा है कि परिदृश्य में इस बदलाव के पीछे अमेरिका की कोई बड़ी उदारता नहीं, वरन उसकी मजबूरी है।
वस्तुत: पिछले वर्ष अमेरिका द्वारा चीन से आयातित वस्तुओं पर 250 अरब डॉलर का शुल्क लगाए जाने से अमेरिका के उपभोक्ताओं और अमेरिकी कंपनियों को चीन से आयातित वस्तुओं पर बढ़ी हुई लागत चुकानी पड़ रही है। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं तथा अमेरिकी कंपनियों को अधिक आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है।
यद्यपि अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर खत्म होने के करीब है, लेकिन इस ट्रेड वॉर के बीच अमेरिका और चीन में भारत के निर्यात बढ़ने के जो नए मौके बन रहे थे, वे रुक जाएंगे। इसके साथ ही अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले नए आयात शुल्कों से भारतीय निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ जाएगी।
ऐसे में भारत-अमेरिका के बीच कारोबारी तनाव कम करने के लिए बेहतर यही होगा कि दोनों देश वाणिज्यिक वार्ता आगे बढ़ाएं। इस संदर्भ में भारत अमेरिका के रुख में नरमी लाने के लिए यह भी कर सकता है कि अमेरिका से आयात होने वाले उन्नत तकनीक से लैस स्मार्टफोन, सूचना एवं संचार तकनीक से जुड़े उत्पाद आदि पर आयात शुल्क घटाए।
इससे भारत के साथ अमेरिका का व्यापारिक घाटा कम होगा। इसके अलावा भारत को इस संदर्भ में कुछ उसी तरह के पैंतरे आजमाने चाहिए, जैसे चीन ने ट्रेड वॉर के मुद्दे पर अमेरिका को झुकाने के लिए अपनाए।
गौरतलब है कि भारत ने पिछले साल जून में अमेरिका से आयातित 29 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने का इरादा जताया था, जिसे अब तक कई बार टाला जा चुका है।
जवाबी कार्रवाई के तहत भारत इस दिशा में कदम आगे बढ़ा सकता है। वैसे वर्ष 1998 में पोखरण विस्फोट के बाद भी अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन बाद में अमेरिकी कंपनियों के हितों के मद्देनजर उसे ये प्रतिबंध हटाने को बाध्य होना पड़ा था।
भारत और अमेरिका को वाणिज्यिक और कूटनीतिक प्रयासों से कारोबारी संबंधों का तनाव कम करना होगा। इससे दोनों देशों के मध्य कारोबार को सालाना 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने में भी मदद मिलेगी।
दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण कारोबार व निवेश संबंधों के कारण रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और इनकी अर्थव्यवस्थाएं भी सुदृढ़ होंगी। अमेरिका द्वारा भारत को तरजीही व्यापार व्यवस्था से बाहर करने से भारतीय निर्यातकों के समक्ष नई चुनौतियां पैदा होंगी जिससे निपटने के लिए समय रहते उपाय करना होगा