भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे सीबीआइ के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर कार्रवाई के लिए फिलहाल हाईकोर्ट ने भले ही रोक लगा दी हो, लेकिन जांच एजेंसी में उनका बने रह पाना मुश्किल लगता है।
सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा ने सोमवार को पीएमओ के सामने राकेश अस्थाना के खिलाफ हुई कार्रवाई का विस्तृत ब्यौरा पेश किया। बताया जाता है कि पीएमओ ने आलोक वर्मा को इस मामले में कानून सम्मत कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कानूनी कार्रवाई के लिए पीएमओ से हरी झंडी मिलने के बाद आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना को सीबीआइ से निकाल-बाहर करने का फैसला कर लिया था।
ताकि विशेष निदेशक रहते हुए वे जांच को प्रभावित नहीं कर सकें। इसके लिए उनके निलंबन और पद से हटाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई थी।
लेकिन दोपहर बाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद इसे रोक दिया गया। हाईकोर्ट ने सोमवार को अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।
बताया जाता है कि सोमवार को पीएमओ को आलोक वर्मा ने विस्तार से बताया कि किस तरह राकेश अस्थाना अपने पद का दुरुपयोग करते हुए मोइन कुरैशी मामले में गवाह सतीश बाबु सना को डरा-धमकाकर तीन करोड़ रुपये वसूले थे।
सतीश बाबु सना ने मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए अपने बयान में यह स्वीकार किया है। धारा-164 के तहत दिये बयान को अदालत में सबूत के तौर पर देखा जाता है।
आलोक वर्मा ने पीएमओ को यह भी बताया कि सतीश बाबु सना के आरोपों की पुष्टि के लिए दूसरे बहुत सारे सबूत भी मौजूद हैं, जिनमें आरोपियों फोन पर बातचीत के टेप और व्हाट्सएप व सामान्य मैसेज शामिल हैं।
आलोक वर्मा का कहना था कि पुख्ता सबूतों के आधार पर ही एजेंसी को अपने ही विशेष निदेशक के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का जैसा बड़ा फैसला लेना पड़ा।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार राकेश अस्थाना ने भी आलोक वर्मा के बाद पीएमओ के सामने अपनी बात रखने की कोशिश की। लेकिन उन्हें यह मौका नहीं दिया गया।
जाहिर है कि सोमवार को यदि हाईकोर्ट से राकेश अस्थाना को राहत नहीं मिलती है, तो सीबीआइ से उनकी छुट्टी तय मानी जा रही है।
इसके अलावा निलंबन और गिरफ्तारी की आशंका से भी सीबीआइ के अधिकारी इनकार नहीं कर रहे हैं।