केरल में हुई तबाही को लेकर हुआ बडा खुलासा।

केरल में हुई तबाही को लेकर हुआ बडा खुलासा।

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केरल को ईश्‍वर का घर कहा जाता है। लेकिन अब इसी केरल में बाढ़ और इससे हुई तबाही के कारण हाहाकार मचा हुआ है। आठ अगस्‍त से अब तक यहां पर 324 लोगों की मौत हो चुकी है। आलम ये है कि गुरुवार को यहां पर 106 लोगों की जान चली गई।

प्रधानमंत्री ने भी यहां का हवाई सर्वेक्षण कर यहां के भयावह होते हालातों का जायजा लिया है। फिलहाल राज्‍य हो या केंद्र, दोनों सरकारों का जोर यहां पर मदद पहुंचाने का है। अन्‍य राज्‍य की सरकारों ने भी मदद के लिए अपने द्वार खोले हैं।

लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर इस बाढ़ की वजह क्‍या है। आपको इसका जवाब देने से पहले बता दें कि केरल में इससे पहले सन 1924 में जबरदस्‍त बाढ़ आई थी जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।

केरल में आई बाढ़ की खबरों को लेकर पूरे देशवासियों की निगाह इस पर बनी हुई है। इसकी वजह ये भी है कि ज्‍यादातर लोगों की इच्‍छा होती है कि वो भी एक बार केरल देखकर आएं। इसकी वजह है यहां की हरी-भरी पहाडि़यां।

इसके अलावा यहां का बैकवाटर भी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लेकिन बाढ़ की वजह से फिलहाल यहां पर सैलानियों को जाने से रोका गया है।

पिछले दिनों कोच्चि एयरपोर्ट के भी जलमग्‍न होने से यहां पर सैलानी फंस कर रह गए थे। अभी यहां पर चीजें सही होने में कुछ समय जरूर लगेगा। यहां पर युद्धस्‍तर पर बचाव कार्य चल रहा है।

इस बार यहां पहले की अपेक्षा अधिक बारिश हुई है। लेकिन सिर्फ बारिश इस तबाही की वजह नहीं है। इसकी वजह कुछ और भी है। पर्यावरणविद विमलेंदु झा ने सीधेतौर पर इस तबाही की वजह यहां पर लगातार होते अवैध निर्माण को बताया है।

उनका कहना है कि बाढ़ से सबसे ज्‍यादा नुकसान उन जगहों पर हुआ है जो इकोलॉजिकली सेंसिटिव जोन थे। इन क्षेत्रों में लोगों ने धड़ल्‍ले से नियमों को ताक पर रखकर कंस्‍ट्रक्‍शन किया।

इस तरह की जगहों पर पिछले कुछ समय से लगातार अवैध कब्‍जा और अवैध निर्माण किया गया है। इन्‍हीं जगहों पर सबसे ज्‍यादा भूस्‍खलन भी हुआ है।

पर्यावरणविद विमलेंदु झा इस बाढ़ की दूसरी वजह यहां पर बनाए गए चेकडैम को भी मानते हैं। उनका कहना है कि केरल सरकार के पास आज भी इस बात की जानकारी नहीं है कि राज्‍य में कितने चेकडैम मौजूद हैं।

इसके अलावा इस बार यहां पर जलवायु परिवर्तन के दौर में बारिश करीब 300 फीसद अधिक हुई है। लेकिन यदि इन क्षेत्रों में एनक्रॉचमेंट नहीं हुआ होता तो यह नौबत नहीं आती। जहां तक कोच्चि एयरपोर्ट के भी जलमग्‍न होने की बात है तो यह पेरियार नदी की ट्रिब्‍यूटरी पर बना है।

आपको बता दें कि इकोलॉजिकली सेंसिटिव जोन में निर्माण करने की इजाजत नहीं होती है। अवैध निर्माण की वजह से ही पानी के निकलने के मार्ग लगातार बाधित होते चले गए, जिसकी वजह बाढ़ आई और तबाही हुई है।

उनके मुताबिक राज्‍य में भूस्‍खलन की वजह से काफी तबाही देखने को मिली है। लेकिन यदि उन क्षेत्रों पर नजर डालेंगे जहां भूस्‍खलन ज्‍यादा हुआ है तो पता चलता है कि यह वही जगह हैं जहां पर निर्माण की इजाजत न होते हुए भी वहां चेकडैम बनाए गए या फिर इमारतें खड़ी की गईं।

विमलेंदु मानते हैं कि देश में इससे निपटने के लिए नियम काफी हैं। लेकिन वोटबैंक की राजनीति के चलते लगातार इकोलॉजिकली सेंसिटिव जोन में भी हो रहे निर्माण को नहीं रोका जाता है। उनका साफ कहना था कि सरकारें नियमों को खुद ताक पर रखती हैं।

उनके मुताबिक गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट में यह साफतौर पर कहा गया है कि इन क्षेत्रों में निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन सरकारें रिपोर्ट के इतर काम करती आई हैं। यह कमेटी 2010 में बनी थी।

2010 में, व्यापक स्तर पर यह चिंता फैली कि भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर वर्षा के बादलों को तोड़ने में अहम भूमिका निभानेवाला पश्चिमी घाट मानवीय हस्तक्षेप के कारण सिकुड़ रहा है। इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने इस पर रिपोर्ट देने के लिए गाडगिल पैनल का गठन किया था।

उनका ये भी कहना है कि हम जिस तरह के क्‍लाइमेट चेंज में रह रहे हैं उसमें इस तरह की बारिश आगे भी आएंगी। चेन्‍नई में पिछली बार हम इस चीज को देख चुके हैं। इनसे बचाव का सीधा सा एक उपाय है कि हम बदलते समय के लिहाज से खुद को कैसे तैयार करें।

उनके मुताबिक इसके लिए निर्माण पर रोक लगाई जानी चाहिए। दूसरा राज्‍य और केंद्र सरकार को इसके लिए लॉन्‍गटर्म और शॉर्टटर्म पॉलिसी बनानी चाहिए। उन्‍होंने सरकार से अपील की है कि इस बाढ़ के बाद सरकार को चाहिए कि वह इसे प्राकृतिक आपदा घोषित करे।

आपको यहां पर बता दें कि राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण सड़क जाम हो गए हैं। यहां के कई गांव टापू में तब्दील हो गए हैं। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो को सेना के हेलीकॉप्टरों से निकाला जा रहा है।

प्रधानमंत्री के निर्देश पर रक्षा मंत्रालय ने राहत एवं बचाव के लिए सेना के तीनों अंगों की नई टीम भेजी है। राज्य में करीब डेढ़ लाख बेघर एवं विस्थापित लोगों ने राहत शिविरों में शरण ले रखी है। एनडीआरएफ की 51 टीमें केरल भेजी गई हैं ताकि प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द मदद दी जा सके।

जहां तक केरल की भौगोलिक स्थिति का सवाल है तो आपको बता दें कि केरल से 41 नदियां निकलती हैं। केरल में हो रहे बदलाव को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि कृषि के विकास के लिए यहां वनों का दोहन दोगुना हो गया है। इसका सीधा असर यहां के वनक्षेत्र पर पड़ा है।

आंकड़ों के मुताबिक राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र (3,885,000 हेक्टेयर) के 28 फीसद (1,082,000 हेक्टेयर) पर वनक्षेत्र है। वहीं दूसरी ओर कृषि के लिए राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 54 प्रतिशत भूमि का उपयोग होता है।

देश के अन्य भागों की तरह केरल में भी चारागाह के लिए स्थायी क्षेत्र रखा गया है। आंकड़ों से यह बात उजागर होती है कि पिछले कुछ सालों में राज्‍य में खेती का क्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है गैर कृषि क्षेत्र बढ़ रहा है।