जमात-ए-इस्लामी पर कसा शिकंजा, टेरर फंडिंग पर आई बड़ी खबर।

जमात-ए-इस्लामी पर कसा शिकंजा, टेरर फंडिंग पर आई बड़ी खबर।

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पुलवामा आतंकी हमले (Pulwama Terror Attack) के बाद से आतंकियों और अलगाववादियों पर भारत सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) जारी है।

दो दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी को पांच साल के लिए प्रतिबंधित करने के बाद सरकार ने संगठन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और तेज कर दी है।

सरकार के निशान पर अब जमात-ए-इस्लामी की 4500 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जिसे जब्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर ये अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है।

पिछले तीन दिनों से घाटी में जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ केंद्र सरकार की कार्रवाई निरंतर जारी है। आज (शनिवार, 02 मार्च 2019) को भी जमात के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई चल रही है। मालूम हो कि घाटी में 22 फरवरी को कट्टरपंथी अलगाववादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई थी।

शुरूआती दो दिनों में ही जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों से ज्यादा अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है। अब भी अलगाववादी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की सिलसिला जारी है।

अलगाववादी कार्यकर्ताओं के खिलाफ की गई कार्रवाई के दौरान की गई छापेमारी में तकरीबन 52 करोड़ रुपये जब्त किए जा चुके हैं। केंद्र सरकार इनके खिलाफ अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) के तहत कार्रवाई कर रही है।

इसके तहत अलगाववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं और नेताओं की गिरफ्तारी के अलावा अब तक अकेले जमात-ए-इस्लामी के 70 बैंक खाते सील किए जा चुके हैं। इसके अलावा घाटी में उनके ठिकानों पर तालाबंदी की कार्रवाई भी जारी है।

अब तक इनके करीब 100 ठिकानों की पहचान की जा चुकी है और इन्हें सील करने प्रक्रिया जारी है। अनुमान है कि जमात के पास 4500 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जिसे जब्त करने की कार्रवाई चल रही है। संगठन के टेरर फंडिंग में भी शामिल होने के संकेत सरकार को मिले हैं।

सरकार ने शुक्रवार को भी पुलिस और प्रशासन को जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने के आदेश दिए हैं। इसके बाद पिछले करीब 24 घंटे में घाटी में 350 से ज्यादा अलगाववादियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। अलगाववादियों पर हो रही कार्रवाई की महबूबा मुफ्ती ने निंदा भी की थी।

महबूबा अकेली नहीं हैं, पूर्व राज्यमंत्री सज्जाद लोन ने भी इस कार्रवाई का विरोध किया था। कुछ अन्य राजनीतिक पार्टियां और बहुत से लोग भी सरकार की इस कार्रवाई से बौखलाए हुए हैं। बावजूदन सरकार के इरादे साफ हैं कि देश को नुकसान पहुंचाने वाले चाहे कहीं भी हों, उनके पर सर्जिकल स्ट्राइक जारी रहेगी।

पुलवामा हमले के बाद कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पिछले सप्ताह (22 फरवरी 2019) को पुलिस ने जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट और जमात-ए-इस्लामी के 150 से अधिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया था। घाटी में अब तक 700 से ज्यादा अलगाववादी गिरफ्तार किए जा चुके हैं।

जमात पर ये अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। इस कार्रवाई में जमात-ए-इस्लामी प्रमुख अब्दुल हामिद फयाज, जाहिद अली, मुदस्सिर अहमद और गुलाम कादिर सहित दर्जनों नेता गिरफ्तार किए जा चुके हैं।

हिजबुल का दाहिना हाथ माना जाता है जमात-ए-इस्लामी
1990 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था। उस समय अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी को आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का दाहिना हाथ माना जाता था। उस वक्त जमात-ए-इस्लामी, हिजबुल की राजनीतिक शाखा के तौर पर काम करता था।

इसके विपरीत जमात-ए-इस्लामी खुद को हमेशा सामाजिक और धार्मिक संगठन बताता रहा है। आज भी जमात का एक एक बड़ा कैडर, हिजबुल से जुड़ा हुआ है।

जमात ने ही कश्मीरी युवाओं में अलगाववाद और मजहबी कट्टरता के बीज बोए हैं। बीते चार सालों के दौरान जमात के कई नेता कश्मीर के विभिन्न जगहों पर आतंकियों का महिमामंडन करते भी पकड़े गए हैं।

कट्टरपंथी सैय्यद अली शाह गिलानी, मोहम्मद अशरफ सहराई, मसर्रत आलम, शब्बीर शाह, नईम खान समेत शायद ही ऐसा कोई अलगाववादी होगा, जो जमात के कैडर में न रहा हो। यही बात कश्मीर में सक्रिय मुख्यधारा के कई वरिष्ठ नेताओं पर भी लागू होती है।

कई पूर्व सुरक्षा अधिकारी और कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कश्मीर में आतंकवाद की रीढ़ के तौर पर जमायत-ए-इस्लामी किसी न किसी तरीके से काम करती है। इसीलिए केंद्र सरकार ने जमात पर प्रतिबंध लगाया है।

जमात-ए-इस्लामी की नींव 1942 में पीर सैदउद्दीन ने रखी थी। कश्मीर में जमात और नेशनल कांफ्रेंस का ही सबसे बड़ा जनाधार माना जाता है।

इसलिए खुद को सामाजिक और धार्मिक संगठन बताने वाले जमात की कश्मीर की सियासत में भी महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्ष 1971 में जमात ने कश्मीर में चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी थी।

इसके बाद 1972 में जमात के पांच प्रत्याशी पहली बार विधायक बने थे। इनमें कट्टरपंथी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी भी शामिल थे। जमात ने 1975 में इंदिरा-शेख समझौते का खुलेआम विरोध किया था।

इतना ही नहीं जमात को कश्मीर में युवाओं को देश विरोधी गतिविधियों के लिए बरगलाने और पाकिस्तानी नारों के समर्थक के तौर पर भी देखा जाता है। 1987 में जमात ने अन्य मजहबी संगठनों संग मिलकर मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट कश्मीर (मफ) बनाया था।

इस संगठन को उसकी गैरकानूनी और देश विरोधी गतिविधियों की वजह से पहले भी दो बार प्रतिबंधित किया जा चुका है। पहली बार 1975 में मुख्यमंत्री शेख मुहम्मद अब्दुल्ला सरकार ने दो साल के लिए इस संगठन को प्रतिबंधित किया था।

दूसरी बार अप्रैल 1990 में केंद्र सरकार ने इस संगठन पर तीन साल के लिए प्रतिबंध लगाया था। दूसरी बार जब इस संगठन पर प्रतिबंध लगा तब मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्रीय गृह मंत्री थे। अब केंद्र सरकार ने पांच साल के लिए इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया है।