ताजा खबरः नवजोत सिंह सिद्धू ने दिया विवादित बयान, पकड़ गया तूल।

ताजा खबरः नवजोत सिंह सिद्धू ने दिया विवादित बयान, पकड़ गया तूल।

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नवजोत सिंह सिद्धू ने अफीम की खेती को वैध करने की वकालत की है। उन्‍होंने कहा,मेरे चाचा भी दवा के रूप में अफीम खाते थे। इसके बाद सीएम कैप्‍टन अमरिंदर सिंह के बयान से मामला गर्मा गया।

पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने किसानों के लिए अफीम की खेती वैध करने की मांग का समर्थन किया है। यह मांग आम आदमी पार्टी कें निलंबित सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी कर रहे हैं। सिद्धू ने कहा कि अफीम का दवा के रूप में इस्‍तेमाल किया जा सकता है। मेरे चाचा भी दवा के रूप में अफीम खाते थे।

अफीम की खेती चिट्टे (ड्रग) पर लगाम में कारगर साबित होगी। मेडिकल नशे ने पंजाब के युवाओं को बर्बाद कर दिया है। इसके बाद मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह भी सामने आए। कैप्‍टन ने कहा कि यह मामला गंभीर है अौर इसका फिर उठना खुशी की बात है। अब इस मुद्दे का हमेशा के लिए समाधान हो जाना चाहिए। अमरिंदर के बयान के बाद मामला गरमा गया।

बता दें के पटियाला से आप सांसद धर्मवीर गांधी राज्‍य में किसानाें के लिए अफीम की खेती को वैध करने की लंबे समय से मांग कर रहे हैं। सिद्धू ने सोमवार काे यहां कहा, डॉ. धर्मवीर गांधी बहुत अच्छी बात कर रहे हैं। मैं उनका समर्थन करता हूं। मेरे चाचा अफीम को दवा के रूप में लेते थे और उन्‍होंने लंबा जीवन जिया।

इसके बाद पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह भी सामने आ गए और नवजोत सिंह सिद्धू के अफीम पर दिए बयान पर प्रतिक्रिया अपनी प्रतिक्रिया दी। अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘मैं खुश हूं कि यह मुद्दा एक बार फिर आया है। मुझे पूरी उम्‍मीद है कि इस बार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया जाएगा और यह मामले का हमेशा के लिए समाधान हो जाएगा।’

एक खास बातचीत में कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने कहा, मैं ड्रग खासकर अफीम का मामला फिर से उठाए जाने से खुश हूं। मैं अपने पिछले कार्यकाल 2002-05 के समय से इस मामले को उठाता रहा हूं। मैंने इस संबंध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और मुख्‍यमंत्रियों के सम्‍मेलन में भी इस मुद्दे को उठाया।

मैंने साफ कहा भारत की कोई ड्रग पॉलिसी नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता कि मध्‍यप्रदेश में नशे की पैदावार हो और इसे राजस्‍थान में बेचा जाए। इसके साथ ही राजस्‍थान में भी ड्रग और अफीम की पैदावार हो और इससे पंजाब में बेचा जाए व इस तरह पंजाब ड्रग का मार्केट बनता रहे।

कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि बिना सख्‍त ड्रग पॉलिसी के नशा को नहीं रोका जा सके। पहले पूरे देश के लिए एक ड्रग पाॅलिसी बनाई जाए और इस तरह के ड्रग पर रोक लगाई जाए। इसके बाद तय किया जाए कि अफीम या अन्‍य की दवा उद्योग के लिए कितनी आवश्‍यकता है अौर उसके अनुरूप इसकी खेती हो। इसलिए यह अच्‍छा है कि यह मुद्दा एक बार फिर सामने आया है। इस पर गंभीरता से विचार हो अौर इस मामले का स्‍थायी समाधान निकाला जाए।

दूसरी ओर, लुधियाना रेंज के डीआइजी रणबीर सिंह खटरा ने कहा कि पंजाब में अफीम की खेती पर प्रतिबंध है। हम नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के मुताबिक सुबूत इकट्ठा कर रहे हैं और जांच कर रहे हैं।

बता दें कि धर्मवीर गांधी ने दो दिन पहले श्री मुक्तसर साहिब आयोजित रैली में कहा था कि किसानी और जवानी को बचाने के लिए अफीम की खेती जरूरी है। ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले कुछ ही समय में पंजाब बर्बाद हो जाएगा।

सरकारों ने पंजाब को मौत का कुआं बनाकर रख दिया है। पंजाब को बचाने के लिए गेहूं के साथ ही खसखस (अफीम का बीज) की भी बिजाई शुरू करेंगे। फिर भले कैप्टन आ जाएं या कोई और वह नहीं रुकेंगे।

गांधी ने कहा कि 15 साल से पंजाब में करीब-करीब हर घर से मां की चीखें आ रही हैं, जिनके बच्चे मेडिकल नशे ने छीन लिए हैं। पुलिस ने पहले आतंकवाद के नाम पर लोगों को लूटा और अब एनडीपीएस एक्ट आ गया है। इससे पुलिस खूब कमाई कर रही है। 25 हजार युवक इन्हीं केसों में जेल में बंद हैं।

अफीम खाने वालों को अपराधी कहा जा रहा है। वह अपराधी नहीं बीमार हैं। अब नेताओं ने इसे बिजनेस बना लिया है। मेडिकल नशा बेचकर अरबों रुपये कमा रहे हैं। नशा खत्म करने की अकालियों और कांग्रेसियों की नीयत नहीं है। वे शवों पर राजनीति कर रहे हैं।

सांसद गांधी ने स्टेज से खसखस के बीज जमीन पर फेंके। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले अफीम की खेती की मंजूरी लेकर रहेंगे। अकाली और कांग्रेसी उनकी बात से सहमत हैं, लेकिन कुछ वे कुछ बोल नहीं सकते।

इससे पहलेे सिद्धू ने रविवार को लुधियाना में पूर्व मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व उपमुख्‍यमंत्री सुखबीर सिंह बादल पर जमकर हमले किए। सिद्धू ने प्रकाश सिंह बादल को कलियुग का धृतराष्ट्र और सुखबीर बादल को दुर्योधन बताया।

सिद्धू ने कहा कि जिस तरह धृतराष्ट्र की आंखें नहीं थी और उसे सिर्फ दुर्योधन दिखता था, उसी तरह प्रकाश सिंह बादल को सिर्फ सुखबीर दिखता है। बाकी टकसाली अकालियों को उन्होंने किनारे कर दिया है। इसका नतीजा है कि सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे टकसाली नेताओं को अकाली दल के सभी पदों से इस्तीफा देना पड़ा।