केरल के चर्चित सबरीमाला मंदिर विवाद को लेकर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि पूजा के अधिकार का मतलब अपवित्र करने का अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के केरल में सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के आदेश के खिलाफ प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है।
विरोध प्रदर्शन के बीच केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने मंगलवार को कहा कि पूजा करने के अधिकार का यह मतलब नहीं है कि आपको अपवित्र करने का भी अधिकार प्राप्त है।
केंद्रीय मंत्री ने मुंबई में ब्रिटिश हाई कमीशन और आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित ‘यंग थिंकर्स’ कांफ्रेंस में कहा, ‘मैं शीर्ष कोर्ट के आदेश के खिलाफ बोलने का अधिकार नहीं रखती हूं, क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं।
लेकिन यह साधारण-सी बात है क्या आप माहवारी के दौरान किसी दोस्त के घर में जाएंगे? आप ऐसा नहीं करेंगे। क्या आपको लगता है कि ऐसे में भगवान के घर जाना उचित है? यही फर्क है। मुझे पूजा करने का अधिकार है लेकिन अपवित्र करने का अधिकार नहीं है। इसी फर्क को पहचानने तथा सम्मान करने की जरूरत है।’
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘मैं हिंदू धर्म को मानती हूं और मैंने एक पारसी से शादी की है। मैंने यह सुनिश्चित किया कि मेरे दोनों बच्चे पारसी धर्म को मानें और पारसियों के प्रार्थना स्थल (अगिअरी) तक जाएं।’ स्मृति ईरानी ने याद किया जब उनके बच्चे अगिअरी के अंदर जाते थे तो उन्हें सड़क पर या कार में बैठना पड़ता था।
उन्होंने कहा, ‘जब मैं अपने नवजात बेटे को अगिअरी लेकर गई तो मैंने उसे मंदिर के द्वार पर अपने पति को सौंप दिया और बाहर इंतजार किया क्योंकि मुझे दूर रहने और वहां खड़े न रहने के लिए कहा गया।’
सोशल मीडिया पर टीका-टिप्पणी शुरू होने के बाद केंद्रीय कपड़ा मंत्री ने ट्वीट कर सफाई दी है। उन्होंने कहा है, ‘क्योंकि सबरीमाला के संबंध में मेरे बयान पर चर्चा हो रही है।
ऐसे में मैं अपने कमेंट पर कमेंट करना चाहूंगी। एक हिंदू होने के नाते और एक पारसी से शादी करने की वजह से मुझे अगिअरी में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है।’
स्मृति ईरानी ने कहा, ‘मैं पारसी समुदाय और उनके पुजारियों का सम्मान करती हूं और दो पारसी बच्चों की मां होने नाते वहां पूजा करने के अधिकार के लिए किसी कोर्ट के दरवाजे पर नहीं गई।
इसी तरह मासिकधर्म वाली पारसी या गैरपारसी महिलाएं किसी भी अगिअरी में प्रवेश नहीं करती हैं।’ उन्होंने कहा, ‘ये दो तथ्यात्मक बयान हैं।’
उन्होंने कहा, ‘जहां तक एक दोस्त के घर खून से सने पैड को ले जाने के मेरे बयान पर हमला बोलने का सवाल है तो मुझे अब तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला है, जो ऐसा करता हो।’
स्मृति ने कहा, ‘लेकिन यह मुझे चकित करने की जगह मुझे इस पर हंसी आती है कि एक महिला के तौर पर मुझे अपना दृष्टिकोण रखने की इजाजत नहीं है और ‘उदारवादी’ दृष्टिकोण की बात है तो मैं स्वीकार्य हूं यह कितना उदारवादी है?’
केरल की कुछ महिलाओं ने खून सने सेनेटरी नैपकिन के साथ सबरीमाला मंदिर में घुसने की धमकी दी थी। इसी धमकी की ओर इशारा करते हुए स्मृति ईरानी ने अपनी टिप्पणी में पूजा के अधिकार को परिभाषित किया है।
एक ईसाई और एक मुस्लिम महिला कार्यकर्ता ने भी सबरीमाला मंदिर तक पहुंचने का प्रयास किया था। दोनों को प्रदर्शनकारियों ने वापस भेज दिया था। इसी बात की ओर इशारा करते हुए स्मृति ईरानी ने खुद के हिंदू होने और परिवार के पारसी होने का अनुभव साझा किया है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 28 सितंबर को आदेश दिया था कि सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल (माहवारी की उम्र) की महिलाओं समेत हर उम्र की महिलाएं दर्शन करने जा सकती हैं। इसे लेकर बवाल मचा हुआ है।
शीर्ष कोर्ट के आदेश के बाद पिछले हफ्ते बुधवार से सोमवार तक भगवान अयप्पा का मंदिर खोला गया तो प्रतिबंधित उम्र की किसी भी महिला को अयप्पा भक्तों ने मंदिर में नहीं घुसने दिया।
सबरीमाला मंदिर में एक दर्जन से ज्यादा जिन महिलाओं को पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू करने वाली जगह से लौटाया गया उनमें मुस्लिम महिला कार्यकर्ता रेहाना भी शामिल थी। इस कदम के लिए मुस्लिम समुदाय ने रेहाना को समुदाय से बाहर कर दिया है।