ताजा खबर : सुप्रीम कोर्ट द्वारा आ सकता है, एक एतिहासिक फैसला।

ताजा खबर : सुप्रीम कोर्ट द्वारा आ सकता है, एक एतिहासिक फैसला।

39
0
SHARE

इस समय की सबसे बड़ी खबर सुप्रीम कोर्ट की ओर से मिल रही है। जहां समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट कल ऐतिहासिक फैसला सुना सकती है। जिसको लेकर देशभर की निगाहें इस फैसले पर टिकीं हुई है।

दो समलैंगिक व्यस्क लोगों का संबंध बनाना अपराध है या नहीं, इसे लेकर गुरुवार को देश की सर्वोच्च अदालत फैसला सुना सकती है।

माना जा रहा है कि गुरुवार को इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा फैसला सुना सकते हैं। बता दें कि अक्टूबर, 2017 तक दुनिया के 25 देशों में समलैंगिकों के बीच यौन संबंध को क़ानूनी मान्यता मिल चुकी है।

गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक समलैंगिकता को अपराध के दायरे में रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने जुलाई में इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा 377 पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 10 जुलाई को सुनवाई शुरू की थी और चार दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पीठ ने सभी पक्षकारों को अपने-अपने दावों के समर्थन में 20 जुलाई तक लिखित दलीलें पेश करने को कहा था। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा 1 अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं, ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस मामले में संभवतः कल फैसला सुनाया जा सकता है।

आईपीसी की धारा-377 के मुताबिक़, अगर कोई व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाता है तो उसे उम्रक़ैद या जुर्माने के साथ दस साल तक की क़ैद हो सकती है।

आईपीसी की ये धारा लगभग 150 साल पुरानी है। इसी व्यवस्था के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थीं।

इन याचिकाओं में परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा 377 को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी।

धारा 377 को खत्म करने का मुद्दा सबसे पहले नाज फाउंडेशन ने 2001 में उठाया था। फाउंडेशन की याचिका पर विचार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने 2009 में इस धारा को खत्म करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को 2013 में पलट दिया। इस मामले में दायर रिव्यू पिटीशन को भी शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया था। उसके बाद इसमें क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की गई जो लंबित है।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दायर नई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। संविधान पीठ ने शुरुआत में ही कह दिया था कि वह इस मामले में दायर क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई नहीं करेगी।

केंद्र सरकार ने नई याचिकाओं पर सुनवाई टालने का आग्रह किया था लेकिन शीर्ष अदालत ने उसे ठुकरा दिया था।