देशभर में काल बनी यह बीमारी, हो जाइए सावधान।

देशभर में काल बनी यह बीमारी, हो जाइए सावधान।

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देशभर में टाइफाइड की बीमारी के मामलों में वृद्धि हुई है। यह तेज बुखार दूषित भोजन या पानी के माध्यम से फैलता है। फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉक्टर अंबाना गौड़ा ने कहा कि कई कार्यालयों, कंपनियों और घरों में कैन वॉटर (डिब्बाबंद पानी) का इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर उचित सफाई के अभाव में इसके प्रदूषित होने की संभावना बढ़ जाती है।

कई सारे कैन गंदे और अनहाइजीनिक हो सकते हैं। बाजार में आज 150 से अधिक बोतलबंद पानी के ब्रांड मौजूद हैं। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे साफ और बिना संक्रमित पानी दे रहे हैं। इसके लिए पानी को फिल्टर कर, ओजोन ट्रीटमेंट या रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) की प्रक्रिया से गुजारकर यूज के लिए फिट बनाया गया होगा।

मगर, कई अवैध मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स हैं, जो बिना लाइसेंस या आवश्यक मानकों के चल रही हैं, जिन्होंने लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया जाता है। बैक्टीरिया पानी या सूखे मल में कई हफ्तों तक जीवित रह सकते हैं और इसलिए दूषित पानी बीमारी फैलने का सबसे आम माध्यम है। इस हालत को रोकने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि पानी को उबालकर इस्तेमाल किया जाए और ताजा पकाया हुआ खाना खाया जाए।

एक वॉटर प्यूरीफाइंग कंपनी के मालिक रमेश ने कहा कि हमारे पास बीआईएस प्रमाण पत्र है और हम बताए गए मानकों का पालन करते हैं। पानी आमतौर पर आरओ प्रक्रिया द्वारा शुद्ध किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि 10 लीटर पानी शुद्ध किया जाना है और मानकों का भी ध्यान रखा जाना है, तो करीब 3 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। लिहाजा, पानी की बर्बादी रोकने के लिए कई विक्रेता प्योरीफिकेशन की प्रक्रिया में कटौती कर देते हैं।

बताते चलें कि न्यूयॉर्क की स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया कि भारत सहित दुनियाभर में सप्लाई होने वाली पानी की 90 फीसद से अधिक बोतलों में प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े पाए जाते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि पीने के पानी के लिए मांग तेजी से बढ़ती जा रही है, लिहाजा कई अवैध मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स चल रही हैं। ऐसी अवैध इकाइयों को खत्म करने के लिए मजबूत प्रवर्तन और जांच की जरूरत है।