पीएम मोदी और बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी दलों के लोकसभा चुनाव में एकजुट होने की गुंजाइश अब कम ही दिख रही है। ज्यादातर राज्यों में ऐसा लग रहा है कि मुकाबला तिकोणीय ही रहनेवाला है। कुछ राज्यों में कांग्रेस को गठबंधन में साथी मिल सकते हैं, लेकिन कुछ राज्यों की तस्वीर अभी साफ नहीं है।
2019 के लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ को बेअसर करने के लिए लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर पर ‘महागठबंधन’ बनाने की कवायद चल रही है।
राष्ट्रीय पार्टी और मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस की शुरू से ख्वाहिश रही है कि राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाले महागठबंधन का नेतृत्व उसके हाथ में रहे, लेकिन राज्य स्तर पर जो भी क्षेत्रीय दल मजबूत हो, उसके नेतृत्व में महागठबंधन बनाया जाए। जिन राज्यों में कांग्रेस कमजोर है, वहां वह क्षेत्रीय दल की जूनियर पार्टनर बनने को भी तैयार दिखी।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पिछले महीने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के मौके पर ‘महागठबंधन’ की तस्वीर साफ होने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इनमें से किसी भी राज्य में ‘महागठबंधन’ नहीं बन पाया और लगभग सभी राज्यों में तिकोनी लड़ाई दिखाई पड़ी।
वैसे तो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अभी भी ‘महागठबंधन’ की उम्मीद नहीं छोड़ी है लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में जिस तरह से एसपी-बीएसपी ने अपने गठबंधन से कांग्रेस को शामिल करने से इनकार कर दिया, उसके बाद अब वहां तिकोनी लड़ाई होना तय है। साथ ही अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या अभी भी ‘महागठबंधन’ बनने की उम्मीद कायम है?
महागठबंधन के जरिए एनडीए के खिलाफ सीधी लड़ाई की उम्मीद अब कम है। सिर्फ यूपी ही नहीं 21 सीट वाले ओडिशा में नवीन पटनायक ने किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनने से साफ मना कर दिया है।
वहां भी बीजेडी-कांग्रेस-बीजेपी के बीच तिकोनी लड़ाई होगी। 17 सीटों वाले तेलंगाना में महागठबंधन बनने का सवाल ही नहीं। बीजेपी के खिलाफ टीआरएस-ओवैसी एक साथ हैं तो कांग्रेस-चंद्रबाबू नायडू दूसरे पाले में हैं।
25 सीटों वाले आंध्र प्रदेश में भी कुछ ऐसी ही तस्वीर है। सात सीटों वाले दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के साथ आने की संभावना खत्म हो गई है। बीजेपी के खिलाफ ये दोनों पार्टियां अलग-अलग ताल ठोकती नजर आएंगी।
14 सीट वाले असम में भी एनडीए के खिलाफ कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों के साथ मेल नहीं बन पा रहा है। सीटों की संख्या के लिहाज से देश के तीसरे सबसे बड़े राज्य पश्चिम बंगाल (42 सीट) में भी बीजेपी के खिलाफ एका नहीं हो सकी है।
टीएमसी अपने साथ किसी भी सूरत में वामदलों को लेने को तैयार नहीं है। वहां कांग्रेस को अभी तय करना बाकी है कि वह टीएमसी के साथ अपना नाता रखे या वामदलों से। 11 सीट वाले छत्तीसगढ़ में भी महागठबंधन की कोई गुंजाइश नहीं है।
बीएसपी और जोगी की पार्टी विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी मिलकर कांग्रेस और बीजेपी से मुकाबिल रहेंगी। 20 सीटों वाले केरल में भी बीजेपी के खिलाफ लेफ्ट फ्रंट और यूडीएफ का अलग-अलग पालों में रहना तय है।
तिकोनी लड़ाई वाले इन नौ राज्यों की सीटों का अगर जोड़ किया जाए तो 237 बैठता है। इस तरह कुल सीटों (543) के लगभग 44 प्रतिशत पर महागठबंधन जैसी कोई तस्वीर बनने की गुंजाइश नहीं है।
सीटों की संख्या के लिहाज से दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र (48 सीट) में फिलहाल तो बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन से सीधे मुकाबले की तस्वीर दिखाई पड़ती है लेकिन शिवसेना की बीजेपी के साथ जिस तरह से तल्खी दिखाई पड़ रही है, उसमें उनके साथ लड़ने की उम्मीद कम ही है।
शिवसेना कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में अपनी जगह तलाश चुकी है, लेकिन कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि शिवसेना को साथ लेने का सवाल ही नहीं। ऐसे में अगर शिवसेना एनडीए से बाहर निकली तो महाराष्ट्र में भी तिकोनी लड़ाई हो जाएगी।
4 राज्यों के 121 सीटों पर कुछ नहीं कहा जा सकता अभी
28 सीट वाले कर्नाटक में इस वक्त बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार में है। वैसे तो स्वाभाविक तौर पर लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी की लड़ाई इस गठबंधन से दिखती है लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर जिस तरह से कांग्रेस-जेडीएस में ठनी हुई है, उसमें किसी भी अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता। विधानसभा चुनाव में बीएसपी यहां जेडीएस के साथ गठबंधन में थी।
कांग्रेस के साथ गठबंधन में उसके जाने का सवाल नहीं। वह यहां अलग चुनाव लड़ेगी। छह सीटों वाले जम्मू-कश्मीर में भी बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस-पीडीपी-एनसी के बीच एका की संभावना कम ही है।
पीडीपी को लेकर जिस तरह की नाराजगी घाटी में है, उसमें कांग्रेस और एनसी दोनों ही उससे दूरी बनाकर चलना चाहती हैं। 39 सीट वाले तमिलनाडु में बहुकोणीय लड़ाई की उम्मीद दिख रही है। इस तरह से इन चार राज्यों की 121 सीटों को लेकर भी अभी यकीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
अभी तक सिर्फ बिहार ऐसा राज्य है, जहां एनडीए के खिलाफ जितने भी मुख्य विपक्षी दल हैं, वे सभी एकजुट हैं और उनमें कांग्रेस भी शामिल है। आरजेडी यहां ‘महागठबंधन’ को लीड कर रही है। बिहार से 40 लोकसभा सीटें हैं।
26 सीटों वाले गुजरात में मुख्यतौर पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है। यहां पर अन्य राज्यों की तरह कोई प्रभावी क्षेत्रीय पार्टी नहीं है। 29 सीट वाले मध्य प्रदेश और 25 सीट वाले राजस्थान में मुख्यतौर पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही सीधी लड़ाई है।
हालांकि इन दोनों राज्यों में पिछले विधानसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। राजस्थान में तो बीएसपी के छह विधायक जीते भी। मध्य प्रदेश में वोट जुटाने के लिए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी का समर्थन भी लेना पड़ा। इस बर एसपी-बीएसपी दोनों राज्यों में भी अपने उम्मीदवार उतार सकती हैं।