केंद्र सरकार ने गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से लेकर अंतरराष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर कॉरिडोर बनाने का फैसला लिया है।
गुरुनानक देवजी के 550वें प्रकाश पर्व पर केंद्र सरकार ने सिख संगत को बड़ा तोहफा दिया है। केंद्र द्वारा गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से लेकर अंतरराष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर कॉरिडोर बनाने के फैसले पर सिख संगत ने खुशी जताई है।
प्रोजेक्ट पर सारी राशि केंद्र सरकार खर्च करेगी। इस कॉरिडोर को लेकर अक्सर पंजाब में राजनीति गरमाती रही है। कुछ माह पूर्व नवजोत सिद्धू इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान गए थे।
इस दौरान उनकी यह यात्रा विवादों में आ गई थी। दरअसल, सिद्धू ने इस दौरान वहां के सेना प्रमुख को गले लगा दिया था। इसके बाद सिद्धू विरोधियों के निशाने पर आए तो सिद्धू ने सफाई दी थी कि सेना प्रमुख ने कॉरिडोर खोलने की बात कही तो वह गले लग गए।
इसके बाद कॉरिडोर को लेकर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखकर मामले को पाकिस्तान के समक्ष उठाने की मांग की थी। अब केंद्र सरकार ने कॉरिडोर बनाने का फैसला लेकर सिख संगत को बड़ा तोहफा दिया है।
पाकिस्तान की सेना ने ही कभी वहां जाने के लिए बने पुल को तबाह कर दिया था। पाकिस्तान के नारोवाल स्थित श्री करतारपुर साहिब और भारत के गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक को जोड़ने के लिए विभाजन से पहले रावी पर बना यह पुल अहम जरिया था। करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालु इसी पुल से रावी पार किया करते थे।
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने सामरिक महत्व वाले इस पुल को ध्वस्त कर दिया। 5 दिसंबर 1971 को सेना को डीबीएन (डेरा बाबा नानक) ब्रिज पर कब्जा करने का आदेश मिला, ताकि इसे दुश्मन के पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
इस मिशन को ‘ऑपरेशन अकाल’ नाम दिया गया। 10-डोगरा, 17 राजपूत व 1/9 गोरखा राइफल्स, 71 आम्र्ड रेजिमेंट, गोरखा राइफल्स की 4/8 कंपनी और 42 फील्ड रेजिमेंट ने ऑपरेशन को अंजाम दिया और अगले दिन पुल पर कब्जा कर दिया। बाद में पाकिस्तान ने इसे नष्ट कर दिया।
श्री करतापुर साहिब गुरुद्वारे को पहला गुरुद्वारा माना जाता है जिसकी नींव श्री गुरु नानक देव जी ने रखी थी। उन्होंने यहां से लंगर प्रथा की शुरुआत की थी।
यह स्थल पाकिस्तान में भारतीय सीमा से करीब चार किलोमीटर दूर है और अभी पंजाब के गुरदासपुर में डेरा बाबा नानक बार्डर आउटपोस्ट से दूरबीन से भारतीय श्रद्धालु इस गुरुद्वारे के दर्शन करते हैैं।
श्री गुरुनानक देव जी का 550 वां प्रकाश पर्व 2019 में वहां मनाया जाना है और इस अवसर पर सिख समुदाय इस कॉरिडोर को खोलने की मांग जोर शोर से कर रहा है।
सिखों के पहले गुरु श्री नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 15 साल करतारपुर की धरती पर ही गुजारे थे। यहां खुद खेती करके उन्होंने समाज को ‘किरत करो, वंड छको और नाम जपो’ का संदेश दिया था।
यहीं उन्होंने अपना शरीर भी छोड़ा था। यह गुरुद्वारा पटियाला स्टेट के महाराजा भूपेंद्र सिंह ने 1947 में बनवाया था। अभी यह गुरुद्वारा निर्माणाधीन ही था कि भारत पाक विभाजन हो गया।
कस्बा बाबा बकाला के गांव पक्खोके टैली साहिब से सरहद के उस पार करीब चार किलोमीटर दूर स्थित श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन के लिए लोगों को अटारी से होकर 150 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर करना पड़ता है।
विभाजन से पहले यह सब बहुत आसान था। डेरा-बाबा नानक के गांववासी साहिब सुबह चार बजे उठकर गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने जाते थे। तब वहां पर माहौल एकदम शांत था।
डेरा बाबा नानक के कुछ बुजर्ग बताते हैं कि विभाजनके बाद सरहद पर बाड़ लगा दी गई। अब बीएसएफ दूरबीन से संगत को गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करवाती है।
हर साल करीब 60 हजार संगत पहुंचकर दूरबीन से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के दर्शन करती है। सरहद के पास स्थित गांव के बुजुर्गों का कहना है कि अगर सरकार श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा कॉरिडोर खेल दे तो उनकी जिंदगी के आखिरी पलों में बड़ी तमन्ना पूरी हो जाएगी।
कस्बा बाबा-बकाला से ठीक 2 किलोमीटर दूर सरहद पर पास बैठे बुजुर्ग एक सुनहरी सपने की उम्मीद में कहते हैं,‘दो देशों के बीच डाली गई लकीर को हटा दिया जाए, तो आपसी मर-मुटाव दूर हो जाएगा। दोनों देशों के लोगों में प्यार बढ़ेगा। विभाजन से पहले श्री करतारपुर साहिब भारत का ही हिस्सा था।
गांव शिकार माछीया की दलजीत कौर कहती हैं, ‘हमारे गांव से गुरुद्वारा साहिब आठ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। विभाजन से पहले जब मैं 7 वर्ष की थी तो सुबह चार बजे उठकर अपनी बेबे के साथ गुरुद्वारा साहिब जाती थी। संगत के साथ सेवा करती थी।
विभाजन के बाद कई सरकारों ने करतारपुर लांघा खोलने का भरोसा दिया, लेकिन कोई सरकार इसे खोलने में कामयाब साबित नहीं हुई। सरकार ने करतारपुर साहिब मार्ग खोलने का भरोसा दिया, इससे बरसों पुरानी उम्मीद फिर जगी है।’
वीरातेजा निवासी 80 वर्षीय हरजिंदर सिंह कहते हैं, ‘विभाजन से पहले हम काफी छोटे हुआ करते थे, तब हर रोज पिता के साथ श्री करतारपुर साहिब में स्थित गुरुद्वारा में सेवा करने के लिए जाते थे।
उन्हें सेवा करने में पूरी लगन थी, जिस कारण उन्हें वहां के पाठी व जत्थेदार खासा प्यार करते। देशों का विभाजन हो गया। मन को बहुत ठेस पहुंची। अब दूरबीन के जरिए हर रोज सरहद से गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करता हूं।’
शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता जत्थेदार कुलदीप सिंह वडाला का कहना है कि बात वर्ष 2001 की है। विभाजन के बाद गुरु घरों के बिछुड़ने का दर्द रह-रह कर संगत को सताता रहता था।
वडाला ने न सिर्फ इसे महसूस किया, बल्कि इसके लिए ‘गुरुद्वारा करतारपुर साहिब रावी दर्शन अभिलाषी’ संस्था का गठन करके मुहिम भी शुरू की।
इस मुहिम के तहत उन्होंने लगातार 18 वर्षों तक हर माह अमावस्या पर (लगभग 208 बार) डेरा बाबा नानक जाकर इसके लिए अरदास की। उनके निधन के बाद अब इस पंरपरा को उनके बेटे विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला निभा रहे हैं।