यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ बीजेपी के स्टार प्रचारक हैं। वो अपने भगवा आवरण में रह कर राजनीति के चक्रव्यूह में घुसकर आध्यात्मिक अंदाज में अपने शत्रुओं पर शब्दों से कर्ण-भेदी बाण चला रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में योगी ने राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस समेत विपक्ष को घेरते हुए कहा कि, ‘जो राम का नहीं वो हमारे किसी काम का नहीं।’
मध्यप्रदेश में उन्होंने कांग्रेस नेता कमलनाथ पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘तुम्हें अली मुबारक हों, हमारे लिए तो बजरंगबली काफी हैं।’
लेकिन राजस्थान में बजरंगबली पर योगी के बोल से बवाल हो गया है। अलवर की एक रैली में सीएम योगी कथित तौर पर एक वीडियो में हनुमान जी को दलित और वंचित कहते नजर आ रहे हैं।
योगी के बजरंगबली को कथित तौर पर दलित बताए जाने के बाद यूपी की सियासत में गर्माहट आ गई है। योगी के बयान पर जहां दलितों के एक समूह ने कुछ देर के लिए आगरा के एक प्राचीन हनुमान मंदिर में कब्जा कर पूजा कर राज्य के सभी हनुमान मंदिरों पर दावा ठोका तो वहीं अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने हनुमान जी को वनवासी बता कर उन पर भक्ति का अधिकार जताया।
हनुमान जी को लेकर बहस सी चल पड़ी है कि आखिर वो किस जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। सर्व ब्राह्मण समाज ने सीएम योगी को कानूनी नोटिस जारी कर माफी मांगने को कहा तो कुछ लोग सीएम को सद्बुद्धि देने के लिए हवन कर रहे हैं।
योगी के बयान से बदली राजनीतिक फिजां के बीच योग गुरू स्वामी रामदेव भी उतरे। उन्होंने कहा कि हनुमान जी ब्राह्मण थे। वहीं संतों-महंतो ने भी योगी के बयान का विरोध करते हुए कहा कि हनुमान जी ब्राह्मण थे और उन्हें क्षत्रिय की उपाधि मिली थी।
देश भर में राम मंदिर पर एक राजनीतिक और धार्मिक बहस छिड़ी हुई है।
देश की सर्वोच्च अदालत में राम जन्मभूमि का मामला विचाराधीन है। 25 नवंबर को अयोध्या में मंदिर निर्माण की मांग को लेकर हुई धर्म सभा में 1992 के दौर की सियासत का अक्स दिखाई दिया।
विहिप और संतों ने मंदिर निर्माण को लेकर हुंकार भरी। लेकिन अब योगी के बयान से हनुमान जी पर अधिकार की बहस छिड़ गई है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि बीजेपी अब भगवानों को भी जातियों में बांट रही है।
लेकिन योगी वही सबकुछ कह और कर रहे हैं जो कि उनसे अपेक्षित है। वो हिंदुत्व पर बीजेपी के फायर ब्रांड नेता हैं। उनके हिंदुत्व को सिर्फ राम मंदिर आंदोलन की परिधि में सीमित कर के नहीं देखा जा सकता है।
उनके योग का दर्शन देखकर ही उन्हें यूपी का सीएम बनाया तो छत्तीसगढ़ के सीएम डॉ रमन सिंह अपना नामांकन दाखिल करने से पहले उनके पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं।
ऐसे में अगर योगी के हनुमान जी से जुड़े बयान को गौर किया जाए तो ये श्रीराम के बाद बजरंगबली के नाम पर हिंदुओं को संगठित करने की रणनीति भी हो सकती है।
खासतौर से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव संपंन्न होने के बाद अब केंद्र में यूपी ही रहेगा। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी की निर्णायक भूमिका रहेगी।
पांच साल में यूपी में जमीनी स्तर पर राजनीतिक बदलाव हुए हैं। बीएसपी और एसपी ने ऐतिहासिक गठबंधन किया तो बीजेपी को उपचुनावों में हार का भी मुंह देखना पड़ा।
ऐसे में साल 2019 के चुनाव में बीजेपी को अपना सोशल इंजीनियरिंग मजबूत करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी होगी। क्योंकि यहां का वोटर अपनी जाति को ही वोट देता है।
यूपी में 25 प्रतिशत दलित हैं जिनके बूते बहुजन समाज पार्टी अपना साम्राज्य खड़ी कर सकी तो मायावती खुद को दलितों की देवी के तौर पर उभार सकीं।
राम के नाम पर हिंदू वोट मिलने की ही वजह से बीजेपी दो सीटों से दो सौ की सत्ता पर पहुंची। ऐसे में अगर बजरंगबली के नाम पर बीएसपी का वोट बेस टूट कर बीजेपी के साथ आ जाए तो क्या बुरा होगा?
भले ही ये वजह न हो लेकिन सीएम योगी ने इसके जरिए दलितों के सामने एक नए आराध्य, गौरव और प्रतीक को जरूर रख दिया ताकि खुद को दलितों का मसीहा बताने वालों का सिंहासन हिला सके तो मिथ भी टूट सके।
हनुमान जी श्रीराम के भक्त हैं। ऐसे में जाहिर तौर पर हनुमान जी की श्रद्धा जिनके लिए होगी उनके भक्तों के लिए भी श्री राम उतने ही पूज्य और आराध्य देव होंगे।
ऐसे में दलितों को अब राम के नाम के साथ हनुमान जी के नाम पर भी मंदिर आंदोलन के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
कांग्रेस ने राजस्थान में चुनाव आयोग से योगी की शिकायत की है। कांग्रेस का आरोप है कि योगी अपनी रैलियों से सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ रहे हैं और उनकी रैलियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
चुनाव आयोग अब जो भी फैसला करे लेकिन यूपी की सियासत में अब श्रीराम के साथ ही हनुमान जी को लेकर बहस छिड़ गई है कि हनुमान जी किसके हैं।