भक्ति :: देवी माता के पवित्र 51 शक्तिपीठ के दर्शन : भाग – (17)
देवी माता के पवित्र 51 शक्तिपीठ के दर्शन करने के लिए हमें कौन से स्थलों पर जाना होगा और कहाँ सती माता का कौन सा अंग या आभूषण गिरा है जानते है इसके बारे में।
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है।
देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है और यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं।
वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश के कई हिस्सों में स्थित है। भारत में 42 शक्ति पीठ है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में है और 4 बांग्लादेश में, 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है।
शक्ति पीठ क्या है?
मां के सती होने और शक्तिपीठ बनने की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रम्हा को ब्रह्मांड का निर्माण करना था। उन्होंने देवी आदि शक्ति और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया था। देवी आदि शक्ति प्रकट हुई, उन्होंने शिव से अलग होकर ब्रह्मा को ब्रह्मांड के निर्माण में मदद की।
ब्रह्मा जी देवी आदि शक्ति को फिर से शिव मिलाने का फैसला करते हैं। इसलिए उनके पुत्र दक्ष ने माता सती को अपनी बेटी के रूप में प्राप्त करने के लिए कई यज्ञ किये। दक्ष का यह यज्ञ सफल रहा और माता सती ने उनके यहाँ जन्म लिया।
भगवान शिव के अभिशाप के कारण भगवान ब्रह्मा ने अपने पांचवें सिर को शिव के सामने अपने झूठ के कारण खो दिया था। दक्ष को इसी वजह से भगवान शिव से द्वेष था और भगवान शिव और माता माता सती की शादी नहीं कराने का निर्णय लिया था।
माता सती ने कठोर तपस्या की और अंत में एक दिन शिव और माता सती का विवाह हुआ।
कुछ समय बाद भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा के साथ दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया।
इस यज्ञ में दक्ष ने भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा शिव के सामने व्यक्त की, जिन्होंने उसे रोकने के लिए अपनी पूरी कोशिश की परंतु माता सती यज्ञ में चली गई। यज्ञ के पहुंचने के पश्चात माता सती का स्वागत नहीं किया गया।
इसके अलावा, दक्ष ने शिव का अपमान किया। माता सती ने अपने पिता द्वारा अपमान भरे शब्दों को सुन न सकी और उन्होंने अपने शरीर का बलिदान दे दिया।
यज्ञ में हुए अपमान और माता सती के बलिदान से क्रोधित होकर भगवान शिव ने वीरभद्र अवतार में दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और उसका सिर काट दिया।
सभी मौजूद देवताओं से अनुरोध के बाद दक्ष को वापस जीवित किया गया और कटे सिर के बदले एक बकरी का सिर लगाया गया। दुख में डूबे शिव ने माता सती के शरीर को उठाकर विनाश का दिव्य तांडव नृत्य किया।
अन्य देवताओं ने विष्णु को इस विनाश को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया, जिस पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए।
शरीर के विभिन्न हिस्सों भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए।
युगाद्या शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से लगभग 32 किलोमीटर दूर जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी ‘युगाद्या’ तथा भैरव ‘क्षीर कण्टक’ हैं। इस स्थान पर माता सती के दाहिने चरण का अँगूठा गिरा था। त्रेता युग में अहिरावण ने पाताल में जिस काली की उपासना की थी, वह युगाद्या ही थीं। अहिरावण की कैद से छुड़ाकर राम-लक्ष्मण को पाताल से लेकर लौटते हुए हनुमान देवी को भी अपने साथ लाए तथा क्षीरग्राम में उन्हें स्थापित किया।