संविधान की प्रस्तावना में भ्रातृत्व भावना के विकास का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि विविधता में एकता, समभाव और एक दूसरे के प्रति सम्मान हिंदुत्व का भी सार है।
आरएसस के हिंदुत्व एजेंडे को लेकर हमलावर राजनीतिक दलों और संगठनों को सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारतीय संविधान की मंशा और हिंदुत्व के दर्शन की समानता दिखाकर चुप कराने की कोशिश की है।
संविधान की प्रस्तावना में ‘भ्रातृत्व भावना’ के विकास का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि विविधता में एकता, समभाव और एक दूसरे के प्रति सम्मान हिंदुत्व का भी सार है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर कोई कहेगा कि मुसलमान नहीं चाहिए तो हिंदुत्व भी खत्म हो जाएगा। संघ संविधान की प्रस्तावना के एक एक शब्द से न सिर्फ सहमत है बल्कि पूरी श्रद्धा से उसका पालन भी करता है।
संघ के लिए संविधान की भावना हिंदुत्व दर्शन से अलग नहीं है और इसीलिए खुलकर हिंदुत्व की बात करता है। उन्होंने तंज भी किया कि ‘कुछ लोग राजनीतिक रूप से फिट बैठने के लिए भले ही हिंदुत्व शब्द से परहेज करते हों, लेकिन सही मायने में हिंदुत्व दर्शन में किसी भी संप्रदाय से अलगाव नहीं है।’
‘भविष्य का भारत’ विषय पर संघ की तीन दिवसीय चर्चा के दूसरे दिन भागवत ने उस मुख्य मुद्दे (हिंदुत्व) को छुआ जो राजनीति में विवाद का विषय बन गया है। संघ के सहारे भाजपा को निशाना बनाया जाता है और सांप्रदायिकता चुनावी मुद्दा बनता है।
भागवत ने किसी भी राजनीतिक दल का नाम लिए बगैर हिंदुत्व और संविधान को आमने सामने रख दिया। संविधान की प्रस्तावना पढ़ते हुए उन्होंने कहा खुद अंबेडकर ने कहा था कि संविधान की मंशा नागरिकों में भ्रातृत्व पैदा करना और हर व्यक्ति के लिए सम्मान सुनिश्चित करना है।
भागवत ने कहा कि आपस में लड़ाई पैदा करना न तो संविधान की मंशा है और न ही हिंदुत्व दर्शन। उन्होंने कहा- ‘जिस दिन हम कहेंगे कि मुसलमान नहीं चाहिए, उसी दिन हिंदू नहीं रहेंगे।
जिस दिन कहेंगे कि यहां केवल वेद चलेंगे, दूसरे ग्रंथ नहीं चलेंगे उसी दिन हिंदुत्व भाव खत्म हो जाएगा। क्योंकि हिंदुत्व में वसुधैव कुटुंबकम शामिल है। जितने भी संप्रदाय जन्मे सबकी मान्यता है।’
यूं तो हिंदुत्व की यह व्याख्या बार-बार होती रही है और सुप्रीम कोर्ट तक ने हिंदुत्व को धर्म से परे बताया हुआ है। लेकिन वर्तमान राजनीतिक माहौल में भागवत के बयान खासे अहम हैं।
भागवत का यह बयान भाजपा के उन नेताओं के लिए भी थप्पड़ है जो अक्सर ऐसे विवादित बयान देकर चर्चा में छाए रहते हैं। उन्होंने बार-बार हर धर्म व धर्मावलंबियों के लिए हिंदुत्व में सम्मान की बात दोहराते हुए यह स्थापित करने की कोशिश की कि जो लोग हिंदुत्व को सांप्रदायिकता से जोड़ते हैं, वस्तुत: वही समाज को तोड़ते हैं।
हिंदुत्व की विशाल अवधारणा का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि राष्ट्र की पहचान के रूप में संघ ने हिंदू को अपनाया है। कुछ लोग चुप रहते हैं।
इसी क्रम में उन्होंने सर सैयद अहमद खां का भी उल्लेख किया और कहा कि वह बैरिस्टर बने तो लाहौर के आर्य समाज ने उनका स्वागत किया और कहा कि वह मुसलमानों के पहले बैरिस्टर हैं। सर सैयद उठे तो उन्होंने आपत्ति जताई और कहा कि वह पहले भारतीय हैं।