क्या आप जानते हैं औषधीय गुणों से भरपूर माल्टा इस पृथ्वी का सबसे सेहतमंद फल है। यह बात औषधीय सर्वे में भी पुष्ट हो चुकी है। प्रतिदिन महज एक गिलास माल्टा का जूश रोज सेवन कर खुद को काफी दुरुस्त रखा जा सकता है।
माल्टा नींबू प्रजाति का खुशबूदार एंटी ऑक्सीडेंट और शक्तिवर्धक फल है। इसका रस ही नहीं बल्की छिलका भी कारगर है। माल्टा के सेवन से जहां त्वचा चममदार रहती है वहीं दिल भी दुरुस्त रहता है। बाल मजबूर होते हैं। माल्टा के सेवन से गुर्दे की पथरी दूर होती है, चिकित्सक पथरी के रोगियों को माल्टा का जूस पीने के सलाह देते हैं।
भूख बढ़ाने, कफ कम करने, खांसी, जुकाम में यह कारगर होता है। माल्टा के छिलके से स्तर कैंसर के घाव ठीक होते हैं। छिलके से तैयार पावडर का प्रयोग करने से त्वचा में निखार आता है। छिलके से तैयार तेल बहुत फायदेमंद है। माल्टा उच्च कोलस्ट्रोल , उच्च रक्तचाप , प्रोस्टेड कैंसर में असरदार होता है। दिल का दौरे में भी फायदेमंद होता है।
नींबू प्रजाति के फलों से जूस बनाने की प्रवृति के चलते जिले में निजी फल संरक्षण केंद्र बढ़ते जा रहे हैं। राजकीय फल संरक्षण केंद्र के अलावा जिला मुख्यालय में चार निजी केंद्र बनाए गए हैं। जिसके चलते जिले में उत्पादित अधिकांश माल्टा जूस बनाने में प्रयोग किया जा रहा है।
वर्ष 2018-19 में जिले में नींबू प्रजाति माल्टा, संतरा, बड़ा नींबू का 19000 मैट्रिक टन उत्पादन होगा। जिसमें सर्वाधिक उत्पादन माल्टा का है। माल्टा बाजार में आने लगा है। जिसे देखते हुए विभाग ने इस बार समय से माल्टा का समर्थन मूल्य घोषित कर दिया है।
जिले में नींबू प्रजाति के फलों के क्रय के लिए वर्ष 2015 में उत्त्तराखंड औद्यानिक विपणन परिषद देहरादून द्वारा उद्यान विभाग के माध्यम से डीडीहाट, कनालीछीना, बेरीनाग में प्रतिवर्ष दिसंबर माह से क्रय केंद्र संचालित किए जाते हैं।
क्रय केंद्र खोलने के बाद ही वर्ष 2015-16 से माल्टा का क्रय मूल्य घोषित किया जाता है। तब से आज तक क्रय मूल्य बराबर का है। मजे की बात यह है कि इन क्रय केंद्रों में आज तक एक भी काश्तकार माल्टा बेचने को नहीं आया है।
सीमांत जिले में चार हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर माल्टा का उत्पादन होता है। जिले में आधा दर्जन स्थल माल्टा की प्राकृतिक फल पट्टियां रही हैं। विगत एक दशक के बीच माल्टा उत्पादन में जबरदस्त कमी आई है। पुराने माल्टा के पेड़ लगभग समाप्ति पर हैं। काश्तकार हताश हैं। माल्टा के नाम पर काश्तकारों के साथ जो हुआ उसे लेकर मायूसी छाई है।
जिले के आठो विकास खंडों में माल्टा का उत्पादन होता है। जिसमें कनालीछीना , डीडीहाट, और बेरीनाग में सर्वाधिक माल्टा का उत्पादन होता है। गांवों में बाजार नहीं मिल पाता है। गांवों से सड़क तक माल्टा का ढुलान घाटे का सौदा है । जिसके चलते आज तक जिले में एक भी माल्टा उत्पादक माल्टा उत्पादन से आत्मनिर्भर नहीं बन सका है।
कुछ वर्ष पूर्व तक केएमवीएन गांवों में जाकर माल्टा खरीदता था। तब इसके रेट इतने कम थे कि काश्तकार माल्टा बेचने से मना करने लगे। गांव में जाकर निगम द्वारा अति न्यून दर पर माल्टा खरीदे जाते थे और सड़क तक पहुंचाने की जिम्मेदारी काश्तकार की रहती थी। माल्टा का भुगतान कई माह बाद मिलता था। बाद में उद्यान विभाग द्वारा माल्टा क्रय मूल्य तय किए जाने लगे । यह रेट खुले बाजार में बिकने वाले माल्टा से काफी कम रहे। जिसके चलते विभाग के क्रय केंद्रों में काश्तकार नहीं आते हैं।
जिले में माल्टा सदियों से उत्पादित होता रहा है। सरकार आज से मात्र तीन साल पूर्व इसके प्रति सजग हुई। विभागीय कवायद काश्तकारों को राहत देने वाली साबित नहीं हुई है। तीन वर्ष पूर्व का क्रय मूल्य चल रहा है।
जबकि बाजार में माल्टा की मांग बढ़ती जा रही है। वर्तमान में फू्रट प्रोसेसिंग यूनिट लगने से प्रत्येक परिवार माल्टा का प्रयोग जूस बनाने में कर रहा है। खुद गांवों में जाकर माल्टा खरीदा जा रहा है।
सरकार केंद्रों पर 16 से लेकर सात रु पए प्रति क्रिगा की दर से माल्टा के भाव तय किए है। गांवों में ग्रामीण सैकड़े के हिसाब से माल्टा बेच रहे हैं। जो उनके लिए फायदेमंद है। पिथौरागढ़ नगर में बिकने आया माल्टा 20 से 30रु पए प्रतिकिलो बिक रहा है। विकास खंड कनालीछीना के गर्खा के बाराकोट निवासी माल्टा उत्पादक दिनेश जोशी बताते हैं कि माल्टा उत्पादन के लिए सरकार की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला था और नहीं मिल रहा है।
जिला मुख्यालय के निकटवर्ती खड़किनी गांव निवासी प्रगतिशील काश्तकार राजेंद्र पांडेय का कहना है कि यदि सरकार और विभाग ने कुछ किया होता तो आज काश्तकार माल्टा उत्पादन से तौबा नहीं कर रहे होते । मुनस्यारी के मदकोट क्षेत्र के माल्टा उत्पादक केशर सिंह बताते हैं कि गांव में माल्टा तो काफी अधिक है परंतु उसे सड़क तक लाकर बाजार लाने में खर्च अधिक आ जाता है।
सरकार और विभाग से कोई सहयोग नहीं मिलता है। विण के चंडाक क्षेत्र के माल्टा उत्पादक भवान सिंह का कहना है कि विभाग विगत तीन साल से माल्टा का एक ही रेट तय कर रही है। इस रेट पर माल्टा बेचने पर लागत के बराबर ही रह जाता है। प्रोत्साहन नहीं मिलने से काश्तकारों का मोहभंग हो चुका है।