राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार को मिली एक और नई...

राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार को मिली एक और नई सलाह।

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अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने की मांग पर कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को फिलहाल ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।

अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए कुछ हिंदू संगठनों की सरकार से अध्यादेश लाने की मांग पर कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को फिलहाल ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।

इन विशेषज्ञों का मानना है कि कानूनी आधार के हिसाब से सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए।

वरिष्ठ न्यायविद राकेश द्विवेदी और अजीत कुमार सिन्हा का कहना है कि अध्यादेश का रास्ता अपनाने को लेकर केंद्र सरकार पर कोई रोक-टोक नहीं है। लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक इंतजार करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तो इस सिलसिले में कोई भी अध्यादेश नहीं लाया जा सकता है।

ऐसा किसी प्रावधान के कारण नहीं बल्कि फिलहाल इसका औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि सत्ता के बंटवारे में यही होता है। जब कोई मामला न्यायालय के समक्ष है तो उस पर कोई और सरकार कुछ और नहीं कर सकती हैं।

उल्लेखनीय है कि विगत सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी के पहले हफ्ते तक के लिए टाल दी है। इसके बाद से यह बहस शुरू हो गई है।

अदालत के फैसले पर भाजपा से ही यह मांग उठने लगी। साथ ही संघ परिवार के विभिन्न संगठनों ने एक स्वर में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की मांग रख दी।

दोनों संगठनों ने अदालत का फैसला आने से पहले ही संसद के शीतकालीन सत्र में अध्यादेश या कानून लाकर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू कराने पर बल दिया।

इस मामले की कानूनी पेंचीदगियों को समझाते हुए द्विवेदी और सिन्हा ने कहा कि अगर अध्यादेश ला भी दिया गया तो उसे अदालत में फिर चुनौती दी जा सकेगी। द्विवेदी ने कहा कि एक सात जजों की पीठ के फैसले से अध्यादेश पर कभी भी सवाल उठाए जा सकते हैं।

मुझे नहीं लगता कि भाजपा और केंद्र सरकार ऐसा कर सकते हैं। अगर चुनाव के मकसद से ऐसा किया भी तो कोई उसे चुनौती दे देगा। कांग्रेस के वकील उस अध्यादेश को चुनौती दे देंगे।