लद्दाख की तरह ही दक्षिण चीन सागर में भी ड्रैगन को पछाड़ने की तैयारी, कई देश हुए लामबंद
लद्दाख सीमा पर एक बार फिर से चीनी सैनिकों को भारतीय जवानों ने करारा जवाब दिया है। चीन लगातार इस सीमा पर अतिक्रमण करने की कोशिश कर रहा है। इसी कोशिश का नतीजा 15-16 जून को घटी घटना थी, जिसमें चीन के कई सैनिक, भारतीय जवानों के साथ हिंसक झड़प में मारे गए थे। इस घटना में भारत के भी 20 जवान शहीद हुए थे। चीन की विस्तारवादी नीतियों की वजह से ही उसकी सीमा से सटे हर देश से उसका सीमा विवाद है। इसके अलावा चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपने फायदे का कोई भी सौदा छोड़ना नहीं चाहती है, चाहे वो गलत ही क्यों न हो। यही वजह है कि दक्षिण चीन सागर में उसने गैरकानूनी रूप से कब्जा किया हुआ है।
दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन के खिलाफ कई देश लामबंद हो गए हैं। अमेरिका के बाद भारत ने भी इस क्षेत्र में अपने युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। चीन को इस क्षेत्र में रोकने के लिए भारत के साथ अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया व कुछ दूसरे देश भी साथ दे रहे हैं। अमेरिका की ही बात करें तो वो काफी समय से चीन के खिलाफ इस क्षेत्र में आक्रामक रुख अपनाए हुए है। उसके युद्धपोत और विमानवाहक पोत भी इस क्षेत्र की निगरानी के लिए जाते रहे हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल सामने आता है, जिसका जवाब हासिल किए बिना इस पूरे मुद्दे को समझना नाकाफी होगा। सवाल है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है कि चीन इस क्षेत्र को लेकर इतने देशों को अपना दुश्मन बनाए हुए है और किसी भी सूरत से इस क्षेत्र पर अपने प्रभुत्व को खोना नहीं चाहता है।
इस सवाल का जवाब देने से पहले आपको कुछ जरूरी बातें बता देते हैं। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक किसी भी देश की जमीनी सीमा के बाहर समुद्र में करीब 12 नॉटिकल मील तक होती है। इसके बाहर का क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र के नियमों के तहत आता है। चीन इन नियमों की लगातार अनदेखी करते हुए करीब 1200 नॉटिकल मील तक के इलाके को अपना बता रहा है। वहीं इस क्षेत्र पर कई अन्य देश भी अपना दावा जताते रहे हैं। इनमें फिलीपींस, ब्रुनई, इंडोनेशिया, ताइवान, समेत कुछ दूसरे देशों का भी नाम शामिल है। हालांकि, चीन हर बार इन्हें डरा धमका कर चुप कराता आया है।
इस इलाके के अपने खास मायने हैं जिसे समझना बेहद जरूरी है। साउथ चाइना सी, दक्षिणी-पूर्वी एशिया से प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे तक स्थित है। इसका पूरा एरिया करीब 35 लाख स्क्वायर किमी है। यह दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र की सीमाएं ब्रुनेई, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, ताइवान और वियतनाम से मिलती हैं।
इस क्षेत्र में चीन की आक्रामकता की असल वजह यहां पर तेल और प्राकृतिक गैस का अपार भंडार होना है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के मुताबिक, यहां 11 बिलियन बैरल्स ऑयल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस संरक्षित है। यही वजह है कि चीन इस इलाके को छोड़ना नहीं चाहता और इसी वजह से अमेरिका इससे अपना मुंह नहीं फेर सकता। इसके अलावा ये क्षेत्र व्यापारिक दृष्टि से भी काफी खास है। पूरी दुनिया के समुद्री व्यापार का करीब 70 फीसद इस क्षेत्र से होता है। एक अनुमान के हिसाब से इस इलाके से हर साल कम से कम 5 खरब डॉलर के कमर्शियल गुड्स की आवाजाही होती है। अगर इस क्षेत्र पर चीन का प्रभुत्व बना रहता है या दूसरे देश उसके प्रभुत्व को स्वीकार लेते हैं तो उसके लिए ये कमाई का बड़ा जरिया बन सकता है।
1947 में चीन की कुओमितांग सरकार ने सीमांकन कर इलेवन डैश लाइन (Eleven Dash line) के माध्यम से दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा किया था। इसके जरिए चीन ने लगभग पूरे इलाके को शामिल कर लिया था। वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का गठन करने के बाद टोंकिन की खाड़ी को इलेवन डैश लाइन से बाहर कर नाईन डैश लाइन को अस्तित्व में लाया गया। 1958 में जारी चीन के घोषणा पत्र में भी नाइन डैश लाइन के आधार पर दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर अपना दावा किया गया। इस दावे के बाद वियतनाम के स्पार्टली और पार्सल द्वीप समूह, फिलीपींस का स्कारबोरो शोल द्वीप, इंडोनेशिया का नातुना सागर क्षेत्र भी नाईन डैश लाइन के अंतर्गत समाहित हो गए थे। इसके बाद कई एशियाई देशों ने चीन के इस कदम से असहमति जताई। तब से ही इस क्षेत्र पर विवाद कायम है। इस तरह से चीन इस पूरे समुद्री क्षेत्र के करीब 80 फीसद हिस्से पर अपना दावा करता आया है। हालांकि, वियतनाम का कहना है कि उसके पास 1949 का नक्शा है जिसमें पार्सल और स्पार्टली उसके क्षेत्र में आता है।