World Ocean Day 2019: समुद्री प्रदूषण से हर साल मर रहे 10 लाख पक्षी, एक लाख समुद्री जीव
World Ocean Day 2019 प्रदूषण से समुद्र उबल रहा है। 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा होगी प्लास्टिक। जानें- समुद्र में बढ़ रहे प्रदूषण के खतरे और कुछ अन्य दिलचस्प तथ्य।
हमारे महासागरों और अपार जल संपदा के कारण ही पृथ्वी को वाटर प्लैनेट भी कहा जाता है। जल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन है। समंदर की महत्ता को बताने और इसके संरक्षण के लिए ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 8 जून को विश्व समुद्र दिवस (World Ocean Day 2019) मनाया जाता है।
इस बार का थीम है ‘एक साथ मिलकर हम अपने समुद्रों को बचा सकते हैं’(Together we can protect and restore our Ocean)। इसका मकसद लोगों को समुद्र में बढ़ रहे प्रदूषण और उससे होने वाले खतरों के बारे में जागरूक करना है।
आज पृथ्वी ही नहीं समुद्र के लिए भी सबसे बड़ा खतरा है प्लास्टिक। कभी सहूलियत के बना प्लास्टिक आज विकट समस्या बन चुका है। प्लास्टिक व अन्य प्रदूषण की वजह से समुद्र का पानी उबल रहा है। इस वजह से तल में मौजूद समुद्री वनस्पतियों तक तेजी से खत्म होती जा रही हैं। यूके सरकार द्वारा हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली वेबसाइट ईको वाच के अनुसार समुद्र में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की वजह से प्रत्येक वर्ष 10 लाख से ज्यादा पक्षी और एक लाख से ज्यादा समुद्री जीवों की मौत हो रही है।
वैज्ञानिकों के अनुसार हम सांस लेने के लिए जिस ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं, उसकी दस फीसद मात्रा हमें समुद्र से ही प्राप्त होती है। समुद्र में मौजूद सूक्ष्म वैक्टीरिया ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं, जो पृथ्वी पर मौजूद जीवन के लिए बेहद जरूरी है। वैज्ञानिकों को अध्ययन में पता चला है कि समुद्र में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की वजह से ये वैक्टीरिया पनप नहीं पा रहे हैं। इससे समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा भी लगातार घट रही है और पशु-पक्षियों समेत इंसानों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है।
समुद्र में घट रहा ऑक्सीजन
अंतरराष्ट्रीय गैरसरकारी संगठन वर्ल्ड वाइड फंड द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक पृथ्वी पर प्लास्टिक प्रदूषण दोगुना हो जाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र में 1950 से 2016 के बीच, 66 वर्षों में जितना प्लास्टिक जमा हुआ है, उतना अगले केवल 10 साल में जमा हो जाएगा। इससे महासागरों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। समुद्र में 2030 तक प्लास्टिक दहन पर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन तिगुना हो जाएगा, जो हृदय संबंधी बीमारियों को तेजी से बढ़ाएगा।
जहरीली होगी हवा
हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से महज 20 फीसद ही रिसाइकिल हो पाता है। 39 फीसद जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है और 15 फीसद जला दिया जाता है। प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा 2030 तक तीन गुनी हो जाएगी, जिससे ह्रदय रोग के मामले में तेजी से वृद्धि होने की आशंका है।
सिंगल यूज होने वाली प्लास्टिक खतरनाक
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का लक्ष्य 2030 तक स्ट्रॉ और पॉलिथिन बैग जैसी सिर्फ एक बार प्रयोग की जा सकने वाली प्लास्टिक की वस्तुएं को इस्तेमाल से हटाने का है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक बार यूज होने वाली प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक है। प्लास्टिक कचरे में सबसे ज्यादा मात्रा सिंगल यूज प्लास्टिक की ही होती है।
2050 तक मछलियों से ज्यादा होगा प्लास्टिक
हर साल तकरीबन 10.4 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में मिल जाता है। 2050 तक समुद्र में मछली से ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े होने का अनुमान है। प्लास्टिक के मलबे से समुद्री जीव बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। कछुओं की दम घुटने से मौत हो रही है और व्हेल इसके जहर का शिकार हो रही हैं। प्रशांत महासागर में द ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच समुद्र में कचरे का सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां पर 80 हजार टन से भी ज्यादा प्लास्टिक जमा हो गया है।
वर्ल्ड ओशियन डे से संबंधित दिलचस्प पहलू
वर्ल्ड ओसियन डे का कॉन्सेप्ट सबसे पहले 1992 में कनाडा की सरकार द्वारा रियो डि जेनेरियो में अर्थ समिट के दौरान प्रस्तावित किया गया था। इसे यूनाइटेड नेशन जनरल असेम्बली ने दिसंबर 2008 में पास किया। इसके बाद यूएन द्वारा हर साल 8 जून को पूरे विश्व में वर्ल्ड ओसियन डे मनाया जाने लगा।
इस साल के वर्ल्ड ओसियन डे की थीम है – Together we can protect and restore our ocean
महासागर पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भाग में फैले हुए हैं। विश्व के महासागरों एवं सागरों का क्षेत्रफल 367 मिलियन वर्ग किलोमीटर है।
विश्व का सर्वाधिक लगभग 98 फीसद जल समुद्र में है? यह लगभग 2 फीसद नदियों, झीलों, भूगर्त तथा मिट्टी में है। सागरों के कारण ही पृथ्वी को वाटर प्लैनेट (जल ग्रह) कहा जाता है।
अपार जल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हो सका है।
पृथ्वी पर कुल पांच महासागर हैं। प्रशांत महासागर (पैसिफिक ओशन), अटलांटिक महासागर (अटलांटिक ओशन), हिंद महासागर (इंडियन ओशन), आर्कटिक महासागर (आर्कटिक ओशन) और अंटार्कटिक महासागर या दक्षिणी महासागर (अंटार्कटिक ओशन)।
प्रशांत सबसे बड़ा और सबसे गहरा महासागर है। मारियाना ट्रेंच पर इसकी गहराई 11,033 मीटर यानी करीब 11 किलोमीटर है। यह ऑस्ट्रेलिया, एशिया, अमेरिका और ओसेनिया तक फैला है।
प्रशांत महासागर का क्षेत्रफल 6,36,34,000 वर्ग मील है, जो अटलांटिक महासागर के दोगुने से भी अधिक है। इसकी औसत गहराई लगभग 14,000 फीट है।
आर्कटिक ओशियन सबसे छोटा (54 लाख 27 हजार वर्ग मील) और कम गहरा (3900 फीट) महासागर है।
अटलांटिक महासागर को अंध महासागर भी कहते हैं। इसका क्षेत्रफल 4,10,81,040 वर्ग मील है और औसत गहराई 12,839 फीट और अधिकतम 28,614 फीट है।
अटलांटिक महासागर का पानी सबसे ज्यादा नमकीन है। इसके जल में लवणता 3.7 प्रतिशत है।
संसार की सबसे खतरनाक मानी जाने वाली जगहों में से एक बरमूडा त्रिकोण अटलांटिक महासागर में ही है।
हिंद महासागर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है। अफ्रीका और आस्ट्रेलिया के बीच वह लगभग 10,000 किलोमीटर तक फैला है। इसका कुल क्षेत्रफल 7.4 करोड़ वर्ग किलोमीटर है। हिंद महासागर की औसत गहराई 4 किलोमीटर है।
प्रशांत और अटलांटिक महासागर दोनों ध्रुवों को छूते हैं, पर हिंद महासागर केवल दक्षिण ध्रुव को स्पर्श करता है। उत्तर दिशा में वह जमीन से घिरा है।
हिंद महासागर में ही दुनिया का सबसे नमकीन सागर (लाल सागर) और सबसे अधिक गरम सागर (फारस की खाड़ी) स्थित हैं।
आर्कटिक महासागर सबसे कम नमक वाला है। इसी में मीठे पानी का सागर भी है।
अंटार्कटिक महासागर अंटार्कटिका महाद्वीप के चारों ओर फैला हुआ है। यह अन्य महासागरों का विस्तार है। ह्वल मछली के शिकार के लिए यह प्रसिद्ध है।