सीबीआइ चीफ आलोक वर्मा पर आया फ़ैसला, हो गई छुट्टी।

सीबीआइ चीफ आलोक वर्मा पर आया फ़ैसला, हो गई छुट्टी।

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सीबीआइ चीफ के पद से आलोक वर्मा की छुट्टी कर दी गई है। पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में ये फैसला लिया गया।

आखिरकार आलोक वर्मा सीबीआइ के निदेशक नहीं रहे। भ्रष्टाचार के आरोप के बाद 77 दिन की जबरन छुट्टी पर भेजे गए वर्मा एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआइ में वापस लौटे थे, लेकिन कोर्ट ने ही यह भी साफ कर दिया था कि अंतिम फैसला चयन समिति ही करेगी। समिति ने निदेशक पद से हटाने का फैसला सुना दिया।

समिति के सदस्य को तौर पर प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के प्रतिनिधि के तौर पर आए जस्टिस सीकरी ने एक मत से हटाने का फैसला लिया। जबकि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसका विरोध किया।

वर्मा को बाकी बचे 21 दिनों के कार्यकाल के लिए फायर सर्विस का महानिदेशक बना दिया गया है। वर्मा की अनुपस्थिति में सीबीआइ निदेशक का कार्यभार संभालने वाले एम नागेश्वर नए निदेशक की नियुक्ति तक कार्यवाहक निदेशक के रूप में काम संभालेंगे।

23 अक्टूबर की रात को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने को आलोक वर्मा ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि उन्हें हटाने का अधिकार सिर्फ चयन समिति को है। सरकार अपने स्तर पर यह फैसला नहीं ले सकती है।

जबकि सरकार का कहना था कि आलोक वर्मा को निदेशक पद से नहीं हटाया गया है, बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को देखते हुए सीवीसी की सिफारिश पर उनसे कार्यभार ले लिया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कार्यभार छीनने का फैसला भी सिर्फ चयन समिति ही कर सकता है। वर्मा को सीबीआई निदेशक पद पर बहाल करते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने उनपर नीतिगत फैसले लेने पर रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बाद आलोक वर्मा ने बुधवार को ही सीबीआइ निदेशक का कार्यभार संभाल लिया और एम नागेश्वर राव के फैसले को बदलते हुए विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच कर रहे अधिकारियों को वापस मुख्यालय बुला लिया।

दूसरी ओर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चयन समिति की बैठक बुलाकर आलोक वर्मा को हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी। बुधवार को देर शाम हुई चयन समिति की पहली बैठक में कोई फैसला नहीं हो पाया था।

लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में चयन समिति में शामिल मल्लिकार्जुन खड़गे ने न सिर्फ आलोक वर्मा को सीबीआइ निदेशक की पूरी शक्ति देने की मांग बल्कि यह भी कहा कि छुट्टी पर भेजे जाने से बर्बाद हुए 77 दिन का वर्मा का कार्यकाल और बढ़ाया जाए। उन्होंने वर्मा को 23/24 अक्टूबर के हटाए जाने की परिस्थितियों की जांच की भी जरूरत बताई थी।

लेकिन भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के प्रतिनिधि के तौर पर चयन समिति की बैठक में शामिल जस्टिस एके सिकरी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को लंबित रहने को देखते हुए वर्मा को सीबीआइ निदेशक के रूप में बनाए रखने को उचित नहीं माना।

सीबीआइ के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के साथ लड़ाई आलोक वर्मा को भारी पड़ी। अस्थाना ने वर्मा पर लालू यादव के खिलाफ होटल के बदले जमीन घोटाले में छापा में रुकावट डालने से लेकर मांस व्यापारी मुइन कुरैशी के मामले में दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेने समेत कई आरोप लगाए थे।

यही नहीं, अस्थाना के मातहत काम करने वाली जांच टीम ने सतीश बाबु सना से सीआरपीसी की धारा 161 का बयान भी दर्ज कर लिया था, जिसमें उसने आलोक वर्मा को रिश्वत देने की बात मानी थी।

वहीं आलोक वर्मा ने उसी सतीश बाबु सना का सीआरपीसी धारा 164 के तहत बयान दर्ज करा लिया, जिसमें सना ने राकेश अस्थाना पर दो करोड़ 95 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया। आलोक वर्मा के निर्देश पर राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआइआर भी दर्ज कर ली गई।

दो शीर्ष अधिकारियों के झगड़े के सार्वजनिक होने और सीबीआइ की साख को रसातल पर जाते देख सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। सीवीसी की सिफारिश पर आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों से कार्यभार ले लिया गया।