हाल ही में मिली प्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा संशोधित एससी एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट को कड़ी चुनौती मिली है। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तुरंत गिरफ्तारी वाले संशोधित एससी एसटी एक्ट को लेकर काफी बवाल मच रहा है।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए लाए गए संशोधित कानून को बराबरी, अभिव्यक्ति की आजादी और जीवन के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताते हुए रद करने की मांग की गई है।
देश की आजादी के बाद सरकार सभी के लिए कानून में समानता लाने में नाकाम रही। एससी एसटी अत्याचार कानून में तत्काल एफआइआर और तुरंत गिरफ्तारी बहाल करने वाले संशोधित कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई है।
संशोधित कानून को चुनौती देते हुए याचिका मे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्दोषों को बचाने वाले विस्तृत और तर्क संगत फैसले को सरकार ने विपक्षी दलों के दबाव और एक वर्ग को खुश करने के लिए पहले फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की।
पुनर्विचार याचिका लंबित रहने के दौरान ही चुनावों को देखते हुए एससीएसटी वर्ग को संतुष्ट करने के उद्देश्य से सरकार ने कानून में संशोधन कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका प्रथ्वीराज चौहान और प्रिया शर्मा ने दाखिल की है। याचिका में न सिर्फ एससी एसटी अत्याचार निरोधक संशोधित कानून 2018 को रद करने बल्कि उसके क्रियान्यवयन पर भी रोक लगाए जाने की मांग की गई है।
कहा गया है कि इस कानून के दुरुपयोग के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं ऐसे में अभियुक्त को अग्रिम जमानत के प्रावधान का लाभ न मिलना उसके बराबरी के हक का उल्लंघन है। ये कानून जीवन के अधिकार का भी हनन करता है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि औसतन सामान्य वर्ग भी वही समस्याएं झेलता रहा जो अन्य ने झेलीं। देश की आजादी के बाद सरकार सभी के लिए कानून में समानता लाने में नाकाम रही।
सरकार ने अपनी गलती मानने के बजाए कुछ वगरे का तुष्टीकरण शुरू कर दिया जिसका नतीजा जाति,धर्म और क्षेत्र की राजनीति है। इसका नतीजा निर्दोष झेल रहे हैं।
इस कानून के कारण सरकारी अधिकारी किसी कर्मचारी के खिलाफ विपरीत टिप्पणी करने में डरता है, उसे लगता है कि उसे कानून में फंसा दिया जाएगा।
ये कानून व्यक्ति की व्यक्तिगत और पेशेगत प्रतिष्ठा खराब करता है। इससे झूठी शिकायत और मनमानी गिरफ्तारी की छूट मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिये गये फैसले में एससी एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किये थे। जिसमें कहा गया था कि एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा।
डीएसपी संशोधित कानून को चुनौती देते हुए याचिका मे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्दोषों को बचाने वाले विस्तृत और तर्क संगत फैसले को सरकार ने विपक्षी दलों के दबाव और एक वर्ग को खुश करने के लिए पहले फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की।
पुनर्विचार याचिका लंबित रहने के दौरान ही चुनावों को देखते हुए एससीएसटी वर्ग को संतुष्ट करने के उद्देश्य से सरकार ने कानून में संशोधन कर दिया है।
पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके अलावा एफआईआर के बाद तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी।
सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देशव्यापी विरोध हुआ था। जिसके बाद सरकार ने कानून में संशोधन कर कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करते हुए पूर्व व्यवस्था बहाल कर दी है।
कहा गया है कि इस कानून के दुरुपयोग के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं ऐसे में अभियुक्त को अग्रिम जमानत के प्रावधान का लाभ न मिलना उसके बराबरी के हक का उल्लंघन है। ये कानून जीवन के अधिकार का भी हनन करता है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि औसतन सामान्य वर्ग भी वही समस्याएं झेलता रहा जो अन्य ने झेलीं। देश की आजादी के बाद सरकार सभी के लिए कानून में समानता लाने में नाकाम रही।
सरकार ने अपनी गलती मानने के बजाए कुछ वगरे का तुष्टीकरण शुरू कर दिया जिसका नतीजा जाति,धर्म और क्षेत्र की राजनीति है। इसका नतीजा निर्दोष झेल रहे हैं।
इस कानून के कारण सरकारी अधिकारी किसी कर्मचारी के खिलाफ विपरीत टिप्पणी करने में डरता है, उसे लगता है कि उसे कानून में फंसा दिया जाएगा।
ये कानून व्यक्ति की व्यक्तिगत और पेशेगत प्रतिष्ठा खराब करता है। इससे झूठी शिकायत और मनमानी गिरफ्तारी की छूट मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिये गये फैसले में एससी एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किये थे। जिसमें कहा गया था कि एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा।
डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके अलावा एफआईआर के बाद तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी।
सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देशव्यापी विरोध हुआ था। जिसके बाद सरकार ने कानून में संशोधन कर कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करते हुए पूर्व व्यवस्था बहाल कर दी है।