राजस्थान के अजमेर शहर के पास एक ऐसी जगह है यहां एक ही आंगन में दरगाह और शिवालय है। खास बात तो ये है कि यहां स्थित मंदिर के दरवाजे के ऊपर’लाइलाह इल्लिाह आदम सफि्युल्लाह’लिखा है। खास बात तो ये है कि दरगाह में आने वाले मुस्लिम भी इस मंदिर में शिवलिंग की दर्शन और पूजा करते हैं। ये जगह है अजमेर के सोमलपुर गांव में बाबा बादाम शाह की दरगाह। सूफी उवैसिया सिलसिले की है यह आठवीं दरगाह …
– भारत में सूफी उवैसिया सिलसिले की यह आठवीं दरगाह है। सफेद संगमरमर से निर्मित यह दरगाह दूर से ताजमहल जैसी लगती है। बाबा के खास खादिम हजरत हरप्रसाद मिश्रा उवैसी ने इसका निर्माण कराया था। सामान्य जायरीन के लिए यह आस्था का पर्यटन धाम है। बाबा बादाम शाह का जन्म यूपी के मैनपुरी इलाके के गालव गांव में सन् 1870 में हुआ था।
– रूहानियत का सफर उन्होंने 14 वर्ष की उम्र से शुरू किया था। जब बाबा बादाम शाह संत प्रेमदास के संपर्क में आए। तभी उन्होंने अपना घर परिवार सब कुछ छोड़ दिया। संत प्रेमदास ने उन्हें अपना शिष्य नहीं बनाया और उनसे कहा कि तुम्हारा पिरो मुर्शिद तुम्हें अजमेर में मिलेगा।
– ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में 5 वर्ष इबादत के बाद उन्हें आखिर पिरो मुर्शिद सय्यदना मोहम्मद निजामुलहक मिल ही गए। उनके मुरीद होने के बाद से उनके आदेश से इबादत और मानव सेवा में इतने मशगूल हो गए कि लोग दूर-दूर से अपनी दुख तकलीफ लेकर उनके पास आने लगे।
– बाबा बादाम शाह ने कभी किसी जाति धर्म में फर्क नहीं समझा। यही वजह है कि आज भी उनकी दरगाह कौमी एकता की मिसाल बनी हुई है। परिसर में बाबा बादाम शाह की दरगाह है, शिवालय है और मस्जिद भी है। इस पाक मरकज पर आरती भी होती है और अज़ान भी होती है। तारागढ़ की पहाड़ियां की तलहटी में बनी बाबा बादाम शाह की दरगाह में लोगों को उनकी हर समस्या और तकलीफ का हल मिलता है।
बाबा सुनते है सबके मन की बात
– उवैसिया रूहानी सत्संग आश्रम के अध्यक्ष गुरु दत्त मिश्रा ने बताया कि अकीदतमंद बाबा बादाम शाह के रोजे पर अपनी मुरादें मांगते है। बाबा बादाम शाह भी उनके मन की बात को सुन उनकी तकलीफों को दूर करते है। दरगाह आने वाले लोगों का यही अकीदा है कि कई लोगो पीढ़ी दर पीढ़ी यहां आ रहे तो कुछ यही रह कर रूहानी फेज को हर दिन महसूस करते है।
– इस दरगाह से जाति धर्म समुदाय से कोई लेना देना नहीं है। यहां आने वाला बस इंसान है। यही वजह है कि हर धर्म के लोग बाबा बादाम शाह की दरगाह आते है। रोजे पर अपनी बात कहते है और अपने धर्म के मुताबिक इबादत करते है।
-बाबा बादाम शाह के बाद उनके खादिम हर प्रसाद मिश्र ‘ उवैशी ‘ ने इंसानियत के इल्म को आगे बढ़ाया जो आज भी जारी है| बाबा बादाम शाह की अनूठी दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल बनकर आज भी लोगो को इंसानियत के इल्म से रौशन कर रही है।