शुभ दीपावली : जानिए छोटी दीपावली के बारे में की छोटी दीपावली...

शुभ दीपावली : जानिए छोटी दीपावली के बारे में की छोटी दीपावली को छोटी दीपावली क्यों कहते हैं?

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अभ्‍यंग स्‍नान का मुहूर्त: 06 नवंबर 2018 को सुबह 05 बजकर 03 मिनट से सुबह 06 बजकर 38 मिनट तक
कुल अवधि: 01 घंटे 35 मिनट।
दीपदान का मुहूर्त: 06 नवंबर 2018 को शाम 06 बजे से शाम 07 बजे तक।

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) को यम चतुर्दशी (Yam Chaturdashi) और रूप चतुर्दशी (Roop Chatirdashi) या रूप चौदस (Roop Chaudas) भी कहते हैं। यह पर्व नरक चौदस (Narak Chaudas) और नरक पूजा (Narak Puja) के नाम से भी प्रसिद्ध है। आमतौर पर लोग इस पर्व को छोटी दीवाली (Chhot Diwali) भी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा करने और व्रत रखने का व‍िधान है। ऐसी मान्‍यता है कि इस दिन जो व्‍यक्ति सूर्योदय से पूर्व अभ्‍यंग स्‍नान यानी तिल का तेल लगाकर अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) यानी कि चिचिंटा या लट जीरा की पत्तियां जल में डालकर स्नान करता है, उसे यमराज की व‍िशेष कृपा म‍िलती है। नरक जाने से मुक्ति म‍िलती है और सारे पाप नष्‍ट हो जाते हैं। स्‍नान के बाद सुबह-सवेरे राधा-कृष्‍ण के मंदिर में जाकर दर्शन करने से पापों का नाश होता है और रूप-सौन्‍दर्य की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि महाबली हनुमान का जन्म इसी दिन हुआ था इसीलिए बजरंगबली की भी विशेष पूजा की जाती है।

– मान्‍यताओं के मुताबिक नरक से बचने के लिए इस दिन सूर्योदय से पहले शरीर में तेल की मालिश करके स्‍नान किया जाता है।
– स्‍नान के दौरान अपामार्ग की टहनियों को सात बार सिर पर घुमाना चाहिए।
– टहनी को सिर पर रखकर सिर पर थोड़ी सी साफ मिट्टी रखें लें।
– अब सिर पर पानी डालकर स्‍नान करें।
– इसके बाद पानी में तिल डालकर यमराज को तर्पण दिया जाता है।
– तर्पण के बाद मंदिर, घर के अंदरूनी हिस्‍सों और बगीचे में दीप जलाने चाहिए।

यम तर्पण मंत्र
यमय धर्मराजाय मृत्वे चान्तकाय च |
वैवस्वताय कालाय सर्वभूत चायाय च ||

नरक चतुर्दशी के दिन कैसे जलाएं दीया?
कार्तिक चतुर्दशी की रात यम का दीया जलया जाता है। इस दिन यम के नाम का दीया कुछ इस तरह जलाना चाहिए:
– घर के सबसे बड़े सदस्‍य को यम के नाम का एक बड़ा दीया जलाना चाहिए।
– इसके बाद इस दीये को पूरे घर में घुमाएं।
– अब घर से बाहर जाकर दूर इस दीये को रख आएं।
– घर के दूसरे सदस्‍य घर के अंदर ही रहें और इस दीपक को न देखें।

नरक चतुर्दशी से जुड़ी मान्‍यताएं
– पौराणिक कथा के अनुसार नरक चतुदर्शी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीपक जलाए जाते हैं।

– एक दूसरी कथा के अनुसार रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले, ‘मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो? आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नरक जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है?’ यह सुनकर यमदूत ने कहा] ‘हे राजन्! एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है।’ इसके बाद राजा ने यमदूत से एक साल का समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

– मान्‍यता के अनुसार हिरण्‍यगभ नाम के एक राजा ने राज-पाट छोड़कर तप में विलीन होने का फैसला किया। कई वर्षों तक तपस्‍या करने की वजह से उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। इस बात से दुखी हिरण्‍यगभ ने नारद मुनि से अपनी व्‍यथा कही। नारद मुनि ने राजा से कहा कि कार्तिक मास कृष्‍ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्‍नान करने के बाद रूप के देवता श्री कृष्‍ण की पूजा करें। ऐसा करने से फिर से सौन्‍दर्य की प्राप्ति होगी। राजा ने सबकुछ वैसा ही किया जैसा कि नारद मुनि ने बताया था। राजा फिर से रूपवान हो गए। तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं।