हांगकांग में इससे पहले भी बड़े विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं इनमें से एक है 2014 में हुआ अंब्रेला आंदोलन।
हांगकांग में प्रस्तावित नए प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ बुधवार को फिर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। सड़कों पर उतरे हजारों प्रदर्शनकारियों ने पूरे शहर का चक्का जाम कर दिया। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले दागे और रबर की गोलियां बरसाई।
प्रदर्शनकारियों ने भी पुलिस के जवानों पर पत्थर बरसाए। इस प्रस्तावित कानून में आरोपितों और संदिग्धों को मुकदमा चलाने के लिए चीन में प्रत्यर्पित करने का प्रावधान है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कानून से हांगकांग की स्वायत्तता और यहां के नागरिकों के मानवाधिकार खतरे में आ जाएंगे।
हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं है जब हांगकांग में इतने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इससे पहले भी ऐसी ही भीड़ हांगकांग में सड़कों पर उतकर प्रदर्शन कर चुकी है, लेकिन इस बार का आंकड़ा इसलिए हैरतअंगेज़ है क्योंकि पिछले सबसे बड़े प्रदर्शन के मुकाबले करीब दोगुने लोग सड़कों पर उतरे थे। इनमें से एक आंदोलन है 2014 में हुआ ‘अंब्रेला आंदोलन’।
2014 के ‘अंब्रेला आंदोलन’ में कुछ हज़ार लोग सड़कों पर उतरे थे लेकिन आखिरकार ये आंदोलन नाकाम हो गया था क्योंकि इसे नागरिकों के बड़े वर्ग का समर्थन नहीं मिल पाया था। हालांकि 2014 का ‘अंब्रेला आंदोलन’ भी लोकतंत्र के बचाव के नाम पर था। इस बार प्रत्यर्पण कानून मसौदे के खिलाफ हुए आंदोलन को भी ‘प्रो डेमोक्रेसी’ कहा गया। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर 2014 के ‘अंब्रेला आंदोलन’ के दौरान क्या हुआ था ?
क्यों हुआ था हांगकांग में प्रदर्शन ?
1984 में ब्रिटेन और हांगकांग के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें हांगकांग को चीन को लौटा दिया गया। 1 जुलाई सन् 1997 से हांगकांग पर चीन का शासन चलने लगा। इसके लिए हांगकांग में एक देश-दो सरकार का सिद्धांत लागू किया गया। हालांकि हांगकांग को चीन से उतनी आजादी नहीं मिल सकी जितनी वहां के लोग चाहते थे। हांगकांग का शासन 1200 सदस्यों की चुनाव समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा चलाया जाता है। हांगकांग के लोग चाहते हैं कि ये प्रतिनिधि जनता के जरिए चुने जाने चाहिए। 2007 में यह निर्णय लिया गया कि 2017 में होने वाले चुनावों में लोगों को मताधिकार का प्रयोग करने का हक मिलेगा। 2014 की शुरुआत में इसके लिए कानूनों में जरूरी बदलाव शुरू हुए।
2014 के ‘अंब्रेला आंदोलन’ की शुरुआत
जनवरी 2013 में हांगकांग की एक प्रोफेसर बेनी ताई ने एक आर्टिकल लिखा, जिसमें कहा गया कि सरकार मताधिकार के अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन नहीं कर रही है। इसके लिए उन्होंने एक अंहिसक आंदोलन करने का आह्वान किया। आंदोलन के लिए ऑक्यूपाई सेंट्रल विद लव एंड पीस नाम का एक संगठन बनाया गया। जून 2014 में इस संगठन ने एक जनमत संग्रह भी कराया। जिसमें करीब आठ लाख लोगों ने वोट दिया। ये हांगकांग के कुल वोटरों का 20 प्रतिशत है। 31 अगस्त, 2014 को सरकार ने वोटिंग के नए कानून बनाए, जिसे हांगकांग के लोगों ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद 22 सितंबर 2014 को हांगकांग के कई स्टूडेंट यूनियनों ने इसका विरोध करना शुरू किया। 26 सितंबर 2014 को इस आंदोलन से और लोग जुड़े और सरकारी मुख्यालय के सामने इकट्ठा होकर प्रदर्शन करने लगे। ये लोग पीले कलर के बैंड और छाते अपने साथ लेकर आए थे। इसलिए इसका नाम ‘येलो अंब्रेला प्रोटेस्ट’ रखा गया. प्रदर्शनकारियों ने कुछ सरकारी इमारतों पर भी कब्जा कर लिया। प्रदर्शनकारियों ने उत्तरी हांगकांग की कई सड़कों को जाम कर दिया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया। जिसके बाद हांगकांग के लोगों में गुस्सा और बढ़ गया, पुलिस की इस कार्रवाई के बाद दूसरे आम लोग भी इन प्रदर्शनकारियों के साथ जुड़ गए।
जब खत्म हुआ ‘अंब्रेला आंदोलन’
हांगकांग और चीन के सरकारी अधिकारियों ने इस प्रदर्शन को नियमों का उल्लंघन करने वाला और गैरकानूनी बताया। ये प्रदर्शन 15 दिसंबर 2014 तक चलता रहा। इसके बाद इस आंदोलन को सरकार रोकने में कामयाब रही। इस आंदोलन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कई हिंसक झड़पें हुईं। आंदोलन को 1989 में बीजिंग के तियानमेन चौक पर हुए प्रदर्शनों के बाद सबसे बड़ा लोकतंत्र समर्थक आंदोलन माना जाता है।
4 लोगों को सुनाई गई सजा
इसी साल मार्च में 2014 के अंब्रेला आंदोलनों के लिए चार लोगों को सजा सुनाई गई है। प्रदर्शन में शामिल नौ लोगों पर महीनों तक चले ट्रायल के बाद ये सजा सुनाई गई। इस कार्रवाई को चीन की साम्यवादी सरकार का हांगकांग की स्वायत्तता पर बढ़ते दबाव के तौर पर देखा जा रहा है।