डीएम का मर्डर और वो खून के छींटे

डीएम का मर्डर और वो खून के छींटे

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डीएम का मर्डर और वो खून के छींटे

Bihar Chunav 2020 : अस्सी के दशक में मुजफ्फरपुर का लंगट सिंह कॉलेज ( Langat Singh College ) और यूनिवर्सिटी होस्टल अंडरवर्ल्ड के वर्चस्व की लड़ाई का मुख्यालय बन गया। बेगूसराय से आकर सम्राट अशोक ( Samrat Ashok ) ने यहां बादशाहत कायम की। 1995 तक मिनी नरेश, चंदेश्वर सिंह, छोटन शुक्ला और खुद सम्राट अशोक की लाशें बिछ गईं। ये अंडरवर्ल्ड का टर्निंग साल था। नेताओं के लिए मर्डर और बूथ कैप्चर करने के बदले अपराधियों ने खुद ही राजनीति में धाक जमाने की ठानी।


बिहार में गैंगवार का सेंटर बना मुजफ्फरपुर

उत्तर बिहार शांत है। 90 के दशक के खूनी खेल से दूर। पर खून के छींटे अभी भी मौजूद हैं। कहानी के सूत्रधार खत्म नहीं हुए। हां, रास्ते बदल गए हैं। मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla) अपनी पत्नी के लिए लालगंज सीट से ताल ठोक रहे हैं। उधर लवली आनंद ( Lovely Anand) सुपौल से आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं। आप कहेंगे दोनों में क्या संबंध है? मुन्ना शुक्ला और लवली के पति आनंद मोहन ( Anand Mohan) दोनों ही गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के आरोपी थे। शुक्लाजी बरी हो गए पर आनंद मोहन आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।

पांच नवंबर, 1994 की शाम मुजफ्फरपुर में डीएम की हत्या प्रतिक्रिया थी। ठीक एक दिन पहले अंडरवर्ल्ड डॉन कौशलेंद्र शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला (Chhotan Shukla Murder Case) की हत्या हुई थी और डीएम का मर्डर उन्हीं की शवयात्रा के दौरान हुई। ये वक्त बिहार की राजनीति में माफियाराज का स्वर्णकाल था। उस समय जो खून के छींटे निकले उनकी छाप बिहार विधानसभा चुनाव 2020 ( Bihar Vidhan Sabha Chunav ) में भी दिखाई दे रही है।

पहले पांच नवंबर, 1994 की शाम की कहानी..

बंशी स्वीट से सिंघारा (समोसा) खा कर दामू चौक लौटे ही थे कि देखे लोगों का हुजूम रेलवे लाइन पार कर खबरा की तरफ भाग रहा है. पूछे तो किसी ने कहा कि भुटकुनवा ने बदला ले लिया तो कोई बोला डीएम गए। हम भी भागे। तब तक खेल हो चुका था। सदर थाना का दरोगा रामचंद्र जाड़ में पसीना पोछ रहा था। कुछ कर भी नहीं सकता था। हुजूम गजब का था। गड़बड़ तो तय था क्योंकि आनंद मोहन समेत कम से कम सौ लोग लैस थे। फिर छोटन की शव यात्रा थी। जब शव यात्रा निकली तो बदला ही नारा था। हम जब पहुंचे तब पता चला ड्राइवर ने बड़ी कोशिश की साहब को बचाने की। लाल बत्ती देख कर जी कृष्णैया को बाहर निकाला गया। देख कर हमको लगा गोली मारने से पहले ही मर गए होंगे क्योंकि तब तक भीड़ ने बुरी तरह से कूच दिया था। इसके बाद भी कथित तौर पर भुटकुन ने फायर कर जिंदा रहने की संभावना पर विराम लगा दिया। बहुत देर बाद लाश ले गई पुलिस। तब तक सायरन बजने लगा था और कर्फ्यू लग चुका था। हम भी वापस अपने लॉज लौट गए।

छंटा क्रिमिनल होने के बावजूज मुजफ्फरपुर की सवर्ण आबादी का छोटन के साथ इमोशनल कनेक्ट था। बाबा (रघुनाथ पांडे) के लिए तो ये बड़ा लॉस था। उस समय मुजफ्फरपुर मतलब बाबा की जागीर। कांग्रेस के टिकट पर लगातार विधायक बनते रहे। इस जागीर को संभालने में छोटन की जरूरत थी। लालू का राज था और बैकवर्ड – फॉरवर्ड जातीय संघर्ष अपना चरम छू रहा था। लेकिन सम्राट अशोक और छोटन जैसे युवाओं को लगा कि कब तक नेताओं के लिए काम किया जाए। बूथ कैप्चरिंग के काम से अलग अब ये अपनी खुद की राजनीतिक पहचान बनाना चाहते थे।

तब सामाजिक न्याय की आड़ में लालू यादव गाहे-बगाहे समाज में जहर भी बो रहे थे। भूरा बाल (भूमिहार-राजपूत-ब्राह्मण-लाला यानी कायस्थ ) साफ करो की बात कर लालू ने सवर्णों को गोलबंद कर दिया। जगह-जगह जातीय दंगे हुए। खास बिरादरी के लोगों को थानेदार बनाने के आरोप लगे। 1995 में लालू यादव की दूसरी परीक्षा थी। इस विधानसभा चुनाव से पहले 1994 में ही वैशाली में लोकसभा का उपचुनाव हुआ। इससे पहले आनंद मोहन को ज्यादा नहीं जानते थे। उन्होंने सहरसा के रॉबिनहुड से नेता का शक्ल इजाद किया। ये भी सच है कि लालू आगमन के बाद कसमसाए बिहार के अगड़ों में उनके संभ्रांत नेताओं ने नहीं बाहुबली नेताओं और कथित अपराधियों ने आस जगाई। इन्हीं में एक आनंद मोहन ने लालू को खुलेआम चुनौती दी और वो भी उसी की भाषा में। लालू विरोध को आवाज मिली आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी से।

आनंद मोहन ने लालू यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया

तब मैं मुजफ्फरपुर में ही आईएससी की पढ़ाई कर रहा था। वैशाली उपचुनाव में आनंद की बीवी लवली ने टक्कर दी किशोरी सिन्हा को। पूरे बिहार के एंटी लालू वैशाली की तरफ देख रहे थे। वोट की गिनती एलएस कॉलेज में चल रही थी। आरडीएस कॉलेज में पढ़ाई तो होता नहीं था तो बेमतलब हम भी कॉलेज के गेट पर ही टिके रहे। किसी ने बताया कि गेटे के सामने वाले घर में लवली-मोहन दोनों हैं। ईवीएम तो था नहीं..तो सांझ हो गया। सूरज ढलने तक ये क्लियर हो गया कि लवली जीत रही हैं। नतीजे घोषित होने के बाद गोगल्स लगाए आनंद मोहन डायरेक्ट बोले- छह महीने में हम बिहार के सीएम होंगे.. आनंद महोन जिंदाबाद के नारों से फिजा बदल गई। छोटन शुक्ला ने भी आनंद का हाथ थामा और केसरिया से उनका टिकट पक्का था।

चार नवंबर की शाम केसरिया में प्रचार करने के बाद एम्बेसेडर कार से छोटन शुक्ला घर लौट रहे थे। रात 8 से नौ बजे के बीच उनकी गाड़ी शहर के संजय सिनेमा हॉल के पास पहुंची जहां पुलिस की वर्दी में कुछ लोगों ने रुकने का इशारा दिया। गाड़ी रुकते ही बर्स्ट फायर से पूरा इलाका थर्रा उठा। मिनटों में छोटन शुक्ला समेत पांच लोग गोलियों से भून डाले गए। एके 47 के इस्तेमाल से सारा शहर कांप उठा। इसी साल मुजफ्फरपुर की अदालत में हत्याकांड की फाइल बंद हुई है जिसमें पुलिस को किसी के खिलाफ साक्ष्य नहीं मिला। पर उस जघन्य हत्याकांड के बाद जो बदले की आग थी उसने कई और जानें लीं। छोटन के मर्डर के पीछे बृजबिहारी प्रसाद का हाथ होने की बात सामने आई। 1995 के चुनाव के बाद लालू के नाक के बाल बृजबिहारी प्रसाद कैबिनेट में विज्ञान और तकनीकी मामलों के मंत्री बने।

बदले की आग में श्रीप्रकाश शुक्ल की एंट्री

छोटन शुक्ला के छोटे भाई भुटकुन शुक्ला ने बदला लेने की कसम खाई। कहा जाता है कि वो खुद ही शार्प शूटर था। उसके निशाने से बचना नामुमिकन माना जाता था। उसने उत्तर बिहार के हाजीपुर जोन में रेलवे टेंडरों पर नजर गड़ाए यूपी के डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला से मदद ली और दी। इसी के साथ हथियारों की नई खेप भी उत्तर बिहार में पहुंचने लगी। इसका अघोषित मुख्यालय मुजफ्फरपुर ही था। 1995 के चुनाव में मुजफ्फरपुर से बाबा उर्फ रघुनाथ पांडे का भी दबदबा खत्म हो गया। पिछड़ी जाति के विजेंदर चौधरी ने उन्हें धूल चटा दी।

Source : Navbharat times

आनंद मोहन गोपालगंज डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं

अब भुटकुन की नजर बृजबिहारी प्रसाद पर थी। इसकी भनक उन्हें लग चुकी थी। लालू ने सामान्य पुलिस के अलावा कमांडो की तैनाती उनके सुरक्षा घेरे में कराई। ओंकार सिंह बृजबिहारी का दाहिना हाथ था और वो भी खुद शार्पशूटर था। ओंकार ठेके भी लेता था और बृजबिहारी का मनी मैनेजमेंट भी करता था। एक सटीक सूचना पर भुटकुन ने जीरो माइल पर उसे घेर लिया। कहा जाता है कि लगभग एक दर्जन एके 47 के नाल खोल दिए गए और 400 राउंड फायरिंग हुई। ओंकार के साथ उसके छह गुर्गे भी मारे गए। ये इंतकाम की कहानी का पहला पड़ाव था। बृजबिहारी का नंबर बाकी था। मौत के डर से समझौते की कोशिश भी हुई लेकिन सफलता नहीं मिली।

अब बदले की आग में अगला नंबर भुटकुन का खुद आ गया। 1997 में अंडरवर्ल्ड का रक्तचरित्र सामने आया जब भुटकुन के बॉडीगार्ड दीपक सिंह ने ही उसकी जान ले ली। इसमें भी एके-47 का इस्तेमाल हुआ। दो भाइयों की हत्या के बाद विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला ने बृजबिहारी से बदला लेने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। सूरजभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल , राजन तिवारी सरीखे बाहुबलियों ने मुन्ना शुक्ला का साथ दिया। उधर मंत्री बृजबिहारी प्रसाद इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा घोटाले में फंस गए थे। लालू यादव को सीबीआई जांच करानी पड़ी। गिरफ्तारी से बचने के लिए बृजबिहारी ने बीमारी का बहाना बनाया और वो पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान यानी आईजीआईएमएस में भर्ती हो गए। वहीं उनका काम तमाम करने की साजिश रची गई।

कभी लालू के खिलाफ सवर्णों की आवाज बनी लवली आनंद आज तेजस्वी की शरण में हैं।

13 जून, 1998 का दिन मुकर्रर किया गया। मंत्रीजी के घेरे में ही किसी को मुखबिर बनाया गया। मोबाइल की एंट्री कराई गई। शाम आठ बजे के आस-पास बृजबिहारी प्रसाद बॉडी गार्ड्स के साथ टहलने निकला करते थे। उस शाम भी वही रूटीन था। तभी एक एम्बेसेडर कार अस्पताल परिसर में आती है। बृजिबहारी से बीस कदम दूर ब्रेक लगता है और चंद मिनटों में इसमें बैठे लोग मंत्रीजी पर बर्स्ट फायर करते हैं। एके 47 की तड़तड़ाहट किसी को संभलने तक का मौका नहीं देती। बृजबिहारी के साथ एक बॉडीगार्ड और दो अन्य लोगों की खून से लथपथ लाश वहीं सड़क पर गिर जाती है। कहा जाता है कि ये हत्या खुद श्रीप्रकाश शुक्ल ने की। इसके तीन महीने बाद ही यूपी एसटीएफ ने उसे गाजियाबाद के पास ढेर कर दिया।

इस मामले में सूरजभान, मुन्ना शुक्ला राजन तिवारी समेत आठ लोगों को निचली अदालत ने दोषी करार दिया लेकिन 2014 में हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। जी कृष्णैया हत्याकांड में दो साल से ज्यादा की सजा काटने के बाद मुन्ना शुक्ला चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं और अब पत्नी को आगे ला रहे हैं। वहीं आनंद मोहन सहरसा जेल से बुद्ध पर किताब लिख रहे हैं। उधर पत्नी सुपौल से आरजेडी के टिकट पर भाग्य आजमाने जा रही हैं। सूरजभान खुद बिजनस में व्यस्त हैं और भाई नवादा से सांसद है और चिराग पासवान का झंडा बुलंद कर रहे हैं।

अगड़ी-पिछड़ी की राजनीति को नीतीश बहुत दूर ले आए हैं जहां पुरानी जातीय सीमाएं टूट चुकी हैं। इसी के साथ जातीय वर्चस्व और इससे जुड़ी अदावत की कहानी भी काफी बदल चुकी है। बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी सांसद हैं और इसी उत्तर बिहार में बीजेपी का ओबीसी चेहरा बन कर उभरी हैं।