राजनीति के अटल ..
जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो 31 मई 1996 को ससंद में अपनी सरकार के विश्वास मत के दौरान उन्होंने जो भाषण दिया था, वह कालजयी रचना बन गया.. उस भाषण के दौरान अटल ने अपने संख्या बल के सामने खुद के कमतर होने की बात को स्वीकारते हुए राष्ट्रपति को इस्तीफा देने की घोषणा भरे सदन में की थी. इस्तीफे से पहले अटल जी ने जो बातें कहीं वह उस समय के राजनेताओं के जहन में सदा के लिए बस गई और उनकी नजर में अटल जी का कद और बढ़ गया.
जब अटल जी संसद में बोलना शुरू करते तो कोई सदस्य ऐसा नहीं था जो उनकी बात के बीच में बोलता. सियासत की काली कोठरी में पांच दशक बिताने के बाद भी उनके दामन पर कभी एक दाग नहीं लगा अपने भाषण की शुरुआत में अटल जी ने कहा
”कई बार यह सुनने में आता है कि वाजपेयी तो अच्छा लेकिन पार्टी खराब….अच्छा तो इस अच्छे बाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं?
”आज प्रधानमंत्री हूं, थोड़ी देर बाद नहीं रहूंगा, प्रधानमंत्री बनते समय कोई मेरा हृदय आनंद से उछलने लगा ऐसा नहीं हुआ, और ऐसा नहीं है कि सब कुछ छोड़छाड़ के जब चला जाऊंगा तो मुझे कोई दुख होगा….”
”मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य हूं, सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा, मेरा आचरण देखा, लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा.”
”हमारे प्रयासों के पीछे 40 सालों की साधना है, यह कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, कोई चमत्कार नहीं हुआ है, हमने मेहनत की है, हम लोगों के बीच गए हैं, हमने संघर्ष किया है, यह पार्टी 365 दिन चलने वाली पार्टी है. यह कोई चुनाव में कुकरमुत्ते की तरह खड़ी होने वाली पार्टी नहीं है. ”
अटल जी अपनी कविता के जरिए भी राजनीतिक हालातों और देश की स्थिति पर अपनी बात रखा करते थे. एक बार मीडिया से मुखातिब होते हुए अटल जी ने कहा…
मौत से ठन गई , जूझने का मेरा कोई इरादा ना था
मोड़ पर मिलेंगे इसका कोई वादा ना था,
रास्ता रोककर खड़ी हो गई, ये लगा जिंदगी से बड़ी हो गई
टूटे हुए सपने की सुनें कौन सिसकी, अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी…हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा…
काल के कपाल पर लिखता हूं मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं…
आहूति बाकि यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने, नव दधीच हड्डियां गलाएं…आओ फिर से दिया जलाएं…आओ फिर से दिया जलाएं….
एक बार भवन में उन्होंने आडवाणी को लेकर मजाकिया लहजे में अपनी बात रखी ..
“भारत और पाकिस्तान को साथ-साथ लाने का एक तरीका यह हो सकता है कि दोनों देशों में सिंधी बोलने वाले प्रधानमंत्री हो जाएं, जो मेरी इच्छा थी वह पाकिस्तान में तो पूरी हो गई है लेकिन भारत में यह सपना पूरा होना अभी बाकी है”
अटल जी विपक्षी दलों से हमेशा यह बात कहते कि देश में स्वस्थ लोकतंत्र का व्यवस्था बनीं रहनी चाहिए.. देश की पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी लेकिन देश रहना चाहिए..
जब जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है, उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी ने मुझे विरोधी दल के रूप में जिनेवा भेजा था…पाकिस्तानी मुझे देखकर चकित रह गए थे? वो सोच रहे थे ये कहां से आ गया? क्योंकि उनके यहां विरोधी दल का नेता राष्ट्रीय कार्य में सहयोग देने के लिए तैयार नहीं होता. वह हर जगह अपनी सरकार को गिराने के काम में लगा रहता है, यह हमारी प्रकृति नहीं है, यह हमारी परंपरा नहीं है. मैं चाहता हूं यह परंपरा बनी रहे, यह प्रकृति बनी रहे, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगा-बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए…इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए….
भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रूप में दर्ज है. उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रूप में है…
उनका गौरव हमेशा अमर रहे ..
वो हमारे बीच ही हैं भले उनकी देह ना रहे..
ऐसे अटल जो हर मुश्किल घड़ी में देश के काम आए ..
कोटि कोटि नमन है उनको