देश में खड़ी होने वाली है बेहद गंभीर समस्या – सूत्र

देश में खड़ी होने वाली है बेहद गंभीर समस्या – सूत्र

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क्या देश में बिजली की समस्या खड़ी होने वाली है? क्या अडानी-अम्बानी की कंपनियों पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है? रिलायंस ग्रुप ऑफ कम्पनीज की आर कॉम, पुंज लॉयड जैसी देश की 70 बड़ी कंपनियाँ दिवलिया हो जाएंगी?

यह सवाल इसलिए उठ रहे है क्योंकि, कंपनियों को दी गयी 180 दिनों की मियाद 27 अगस्त को खत्म हो चुकी है। रिज़र्व बैंक ऑफ इणिडया ने फरवरी 2018 में एक सर्कुलर में स्पष्ट किया था कि यदि यह कॉरपोरेट घराने कर्ज चुकाने में 1 दिन की भी देरी करते हैं तो उसे डिफॉल्टर मानकर उसके कर्ज ली गई रकम को एनपीए घोषित कर दिया जाएगा।

तकनीकी रूप से इसे वनडे डिफ़ॉल्ट नॉर्म कहा गया। साथ ही 1 मार्च से लागू भी कर दिया गया।

सर्कुलर के मुताबिक बैंकों को ऐसा सभी पिछले मामलों को सुलझाने के लिए 1 मार्च 2018 से 180 दिनों का वक्त दिया गया था जो 27 अगस्त को खत्म हो चुका है। इस दौरान कंपनियों को और बैंकों के बीच जो मामले नहीं सुलझे उन सभी कंपनियों के खातों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

वहीं दूसरी ओर BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार बैंक और कंपनियों के बीच निपटारा नहीं होने की स्थिति में यह मामला नेशनल कंपनी लॉ डिस्ट्रीब्यूशन यानी एनसीएलटी में चला जाएगा। एनसीएलटी बैंकों को ही इसका समाधान निकालने को कहेगा। इसमें बैंक कंपनियों के लिए रेजोल्यूशन प्लान कर लेकर आ सकते हैं।

एनसीएलटी में मामला जाने पर बैंकों को भारी नुकसान होगा।एनसीएलटी ऐसे मामलों के लिए एक इंसॉल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोफाइल यानी आईआरबी की नियुक्त करेगा। इनका काम होगा कि नुकसान किसका होगा, लेकिन बैंक नहीं चाहते कि मामला एनसीएलटी के पास जाए। क्योंकि इसमें बैंकों को भी भारी नुकसान है। पहले भी ऐसे कई मामले आए हैं जिसमें कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों पर दबाव डालने के लिए एनसीएलटी में मामला भेजा गया, लेकिन उसमें बैंकों को ही नुकसान उठाना पड़ा था।

देश की ऐसी लगभग 70 कंपनियां हैं। जिन पर दिवालिया घोषित किए जाने की कार्यवाही शुरु की जा सकती है। इन कंपनियों पर साढे 3 से लेकर 4 लाख करोड़ रुपए के कर्ज हैं। हालांकि इस सर्कुलर में 200 करोड़ से अधिक बकाया वाली कंपनियों से इस रकम का 20 फ़ीसदी लेकर रिस्ट्रक्चरिंग की बैंकों को छूट दी गई थी, लेकिन अभी इस पर भी सहमति नहीं बन पाई है।

कर्ज में डूबी कंपनियां उत्पादन बंद कर देती हैं तो इससे देश में बिजली की बड़ी किल्लत हो जाएगी।

बैंकों ने रिजर्व बैंक से वनडे डिफॉल्टर नॉर्म की समीक्षा करने का आग्रह किया है। अब बैंक अगर अपनी कार्यवाही करते हैं तो इससे सबसे ज्यादा बिजली कंपनियों पर असर पड़ेगा। क्योंकि इसमें तीन चौथाई कंपनियां पावर सेक्टर की है।

बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के मुताबिक बिजली कंपनियों पर करीब 2.6 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है और बड़े पैमाने पर इनके बकाए के एनपीए होने का खतरा है।

बिजली कंपनियां रिजर्व बैंक के इस सर्कुलर को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट गई लेकिन कोर्ट से भी उनको राहत नहीं मिली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सर्कुलर की वैधता को चुनौती देने वाली बिजली उत्पादन कंपनियों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कंपनी को राहत देने से इंकार कर दिया।

इतना ही नहीं अब कंपनियों ने केंद्र सरकार को लॉक आउट की धमकी दी है। कंपनियों की स्थिति कई कारणों से खराब हो जाती हैं जिसकी वजह से यह बैंकों से लिए कर्ज नहीं लौटा पाते। केवल कंपनी का मैनेजमेंट इसके लिए जिम्मेदार नहीं होते।

सरकारी नीतियां बदल जाती हैं। बिजली की कीमत तय करने में जटिल समस्याएं भी होती हैं। कोयला नहीं मिलने की समस्या भी है अगर बिजली के उत्पादन पर असर पड़ा तो देश में बिजली की समस्या भी खड़ी हो सकती है।