Angrezo ke samay ka kanoon bharat me abhi bhi chalata hai

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Angrezo ke samay ka kanoon bharat me abhi bhi chalata hai

भारत की न्यायपालिका,

“1961 में मेरे पिताजी PWD में चतुर्थ श्रेणी के तकनीकी पद पर नोहर (राजस्थान) में पोस्टेड थे। उस समय तक मेरा जन्म नहीं हुआ था। एक दिन उनके अधिशासी अभियंता ने उनको कहा कि कल सालासर टूर पर चलना है, सो वो सुबह सुबह आफिस पंहुचे और वहाँ से जीप में बैठकर चालक सहित नौ व्यक्ति रवाना हो गये।

सालासर पहुँच कर कोई सरकारी काम तो ना हो सका लेकिन दर्शन करने के पश्चात खाना पीना हुआ और इस दरमियान चालक की मान मनौवल में कोई कमी रह गयी और उसने वापस आकर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में जीप के दुरुपयोग की शिकायत कर दी। इस पर एसीडी ने भी अदालत में जीप के दुरुपयोग का तत्कालीन गंगानगर जिले की अदालत में चालक के अलावा शेष सभी आठ लोगों के विरुद्ध दावा कर दिया और कालांतर में इस केस को बीकानेर सिफ्ट कर दिया गया।

मेरे पिताजी 1995 में रिटायर हो गये, सन 2004 में पिताजी ने मुझे कहा कि आज मेरी कोर्ट में तारीख है और तबीयत खराब है सो कोर्ट मेरे साथ चलना है। मेरी उम्र 2004 में 42 वर्ष हो चुकी थी। कोर्ट जाने पर पिताजी अपनी बारी पर पेश हुए तो पता चला कि आज सरकारी वकील साहब व्यस्त है और मुकदमे की पैरवी करने के लिए हाज़िर नहीं हो सकते। जज साहब नयी तारीख देने लगे तो पिताजी ने कहा, “साहब इजाजत हो तो मैं कुछ अर्ज करता हूँ” और जज साहब के इजाजत देने के बाद पिताजी के बयान के शब्दश: उद्गार मैं नीचे लिख रहा हूँ।

“मान्यवर 42 साल पहले जिस जीप के दुरुपयोग का ये मुकदमा है मैं उस जीप में सवार नौ लोगों में से पद व आयु में सबसे छोटा कर्मचारी था, और 1995 में वो अंतिम व्यक्ति था जो रिटायर हुआ और आज के दिन उन नौ लोगों में इकलौता जीवित व्यक्ति भी हूँ। इस मुकदमे की पेशियों में हाज़िर होने के लिए विभाग आज तक मुझे ₹ 1,30,000/- का TA/DA के रूप में भुगतान कर चुका है। और चूंकि मैं सबसे छोटा कर्मचारी था अत: मुझे ही सबसे कम मिला है लेकिन यदि बराबर भी मान लिया जाए तो लगभग ₹ 1,30,000 X 9 = 11,70,000/- का भुगतान राजकोष से हो चुका है। और हर पेशी पर सरकारी वकील की फीस व हमारे वकील की फीस व न्यायालय के वक्त की बर्बादी अलग से।
“मान्यवर जैसा कि मैंने अर्ज किया कि मेरे सभी सह अभियुक्तों कि मृत्यु हो चुकी है और मै भी अब 70 वर्ष का हूँ और अब मैं भी अदालत में उपस्थित होने में असमर्थ हूँ। अतः मेरी आपसे प्रार्थना है कि चूंकि जीप दुरूपयोग का ही मामला है और आर्थिक दंड से शायद न्याय हो जाये, तो मैं अपने गुनाह को स्वीकार करता हूँ और अगर जेल भी जरूरी है तो जेल भेजो। मेरा क्या भरोसा, मैं अब पका आम हूँ, कभी भी टपक सकता हूँ। फिर आपकी अदालत किसको जेल भेजेगी?”

जज साहब ने तुरंत सरकारी वकील साहब को बुलाया और उनसे कहा कि अगर अभियुक्त गुनाह कबुल कर रहा है तो आप इसमें क्या साबित करना चाहते हैं?

जीप के दुरुपयोग का अनुमानित खर्च ₹36/- किया गया। यद्यपि पिताजी अपने अफसर के निर्देशों का पालन कर रहे थे लेकिन चूंकि उनके द्वारा अपने अधिकारी के गलत आदेशों का विरोध नहीं किया गया इसलिए 160/- का अर्थ दंड लगाया गया।

इस प्रकार कुल लगभग 20 लाख रुपये स्वाहा होने के बाद 196/- रूपये की वसूली से हमारी न्याय व्यवस्था ने अपने न्याय के फर्ज को पूरा किया।

हाँ पिताजी अभी भी जीवित हैं और जब भी कोई कोर्ट जाने की बात करता है तो वो मजे लेकर इस किस्से को सुनाते हैं।