#MeToo कैंपेन में बुरे फंसे पूर्व संपादक और विदेश राज्य मंत्री एम....

#MeToo कैंपेन में बुरे फंसे पूर्व संपादक और विदेश राज्य मंत्री एम. जे. अकबर।

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सोशल मीडिया पर चल रहे #MeToo कैंपेन के तहत आरोप विदेश राज्य मंत्री और पूर्व संपादक एम.जे. अकबर पर लगा है।

सोशल मीडिया पर चल रहे #MeToo कैंपेन के तहत आरोप विदेश राज्य मंत्री और पूर्व संपादक एम.जे. अकबर पर लगा है। एक-के बाद एक 9 महिला पत्रकारों ने अकबर के खिलाफ उनके साथ काम करते हुए यौन-उत्पीड़न का आरोप लगाया है।

एम जे अकबर भले ही विदश दौरे पर हैं लेकिन, इधर देश के भीतर उन पर लग रहे आरोपों ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है।

एम.जे. अकबर के पद पर बने रहने को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं। कयास इसलिए लग रहे हैं क्योंकि विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर एम जे अकबर से सफाई देने या फिर इस्तीफे की मांग कर दी है।

हालांकि सरकार के सूत्रों ने फिलहाल एम.जे. अकबर के इस्तीफे की खबर से इनकार कर दिया है। एम.जे. अकबर के नाइजीरिया के दौरे से गुरुवार को भारत वापस लौटने की संभावना है। उसके बाद ही इस मुद्दे पर उनसे सफाई ली जाएगी।

सूत्रों के मुताबिक, एम जे अकबर पर लगे आरोप काफी गंभीर हैं, लिहाजा उनसे पहले खुद ही सफाई देकर अपना पक्ष रखने को कहा जाएगा। अकबर की सफाई के बाद ही सरकार और बीजेपी हर पहलू पर विचार कर कोई फैसला करेगी।

हालांकि सरकारी सूत्रों का मानना है कि उन पर आरोप तब के लगे हैं जब वो संपादक थे, उसके बहुत बाद वो बीजेपी में शामिल हुए और फिर राज्यसभा के सांसद बनने के बाद मोदी सरकार में मंत्री बने। एम.जे. अकबर पहले कांग्रेस से सांसद भी रह चुके हैं। यानी पत्रकारिता के साथ-साथ उनका बैकग्राउंड कांग्रेस का भी रहा है।

सूत्र बता रहे हैं कि भले ही एम.जे. अकबर अभी विदेश राज्य मंत्री हैं लेकिन, उनका संघ और बीजेपी से पहले का कोई नाता नहीं रहा है और उन पर लगे आरोप मंत्री पद पर रहते हुए नहीं हैं।

लिहाजा सरकार यह देख रही है कि उन पर सोशल मीडिया में ही आरोप लगे हैं या फिर उन आरोपों के समर्थन में कुछ साक्ष्य भी दिया गया है।

जांच इस बात की भी होगी कि क्या उनके खिलाफ कोई पुलिस में शिकायत हुई है या फिर केवल सोशल मीडिया में ही यह कैंपेन चलाया जा रहा है।

बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि अकबर पर कोई भी निर्णय लेते वक्त सावधानी से काम करना होगा, क्योंकि ऐसी छवि नही बने जिसमें सरकार के एक मंत्री का इस्तीफा विपक्ष के दबाव में हो गया हो।

दूसरी तरफ बीजेपी को लगता है कि यह मामला महिला सुरक्षा से जुड़ा है, लिहाजा इसकी अनदेखी करनी भी मुश्किल होगी। बीजेपी और प्रधानमंत्री का पहले से ही महिला सुरक्षा को लेकर जोर रहा है।

ऐसे में अकबर प्रकरण से विपक्ष का महिलाओं के मुद्दे को उछालकर बीजेपी पर हमलावर हो सकता है, वो भी तब जबकि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया हो।

दरअसल सरकार अपने कार्यकाल के दौरान इस बात को बार-बार प्रचारित करती रही है कि उनके किसी भी मंत्री पर पूरे कार्यकाल के दौरान किसी भी तरह का भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा और न ही भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर किसी मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा।

2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद के चुनावों में भ्रष्टाचार बडा मुद्दा रहा था। हालांकि एम.जे. अकबर का मुद्दा भ्रष्टाचार का नहीं है, उनपर यौन-उत्पीड़न के आरोप लगे हैं।

फिर भी अगर किसी केंद्रीय मंत्री का इस्तीफा होता है तो मोदी सरकार के कार्यकाल में ऐसा पहली बार होगा जब किसी मंत्री का इस्तीफा उन पर लगे आरोपों के बाद हो। यही वजह है कि सरकार और बीजेपी सोच-समझ कर कदम उठाना चाह रही है।

बीजेपी या सरकार की तरफ से कोई बड़े नेता इस मसले पर बोलने से कतरा रहे हैं, लेकिन, यूपी सरकार में मंत्री और बीजेपी नेता रीता बहुगुणा जोशी ने इस पर कहा कि इस्तीफे का कोई सवाल ही नहीं उठता है।

उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि जब आप किसी पर आरोप लगाते हैं तो वह साबित होना चाहिए। जोशी ने कहा कि सभी महिलाओं के पास आरोप लगाने का अधिकार है और इसकी जांच भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं ने अपनी बात रख दी है। पुरुषों को भी अपनी बात रखने का अधिकार है।

फिलहाल बीजेपी और सरकार के बीच मंथन चल रहा है। एम.जे. अकबर के विदेश दौरे से लौटने के बाद ही उन पर फैसला होगा।