*Military History Lesson*
It was 1980-81.
After a grueling first term training at the Indian Military Academy, I had come home (Jalandhar) during *‘term-break’* and travelling to Jammu-by bus, to attend a marriage.
When we reached Mukerian , a scholarly looking Muslim gentleman (apparent from his sherwani, cap and neatly cut beard) boarded the bus and took seat next to me.
Bus had covered quite-a- distance, when he broke the ice asking me,
*“आप कहाँ जा रहे हैं ?”*
और बातचीत का सिलसिला चल पड़ा।
उन्होंने बताया कि वह हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं ।
When he learnt that having finished my engineering, I had decided to join Army and currently undergoing training at the Indian Military Academy ,Deharadun, he congratulated me for choosing a prestigious and respected career.
When tête-à-tête turned to curriculum at Military Academy, I told him that apart from physical training, we were taught subjects like *‘Administration, Tactics, Military History etc.’*
इस पर उन्होंने बताया कि Ph.d. के दौरान उनकी रिसर्च का विषय भी *“एक महान मिलिट्री शख्सियत”* ही थी।
When he asked me, which all famous generals we studied in Military History, I mentioned Gen Rommel, General Montgomery and few more.
इस पर कुछ संजीदा होते हुए उन्होंने पूछा,
*“क्या आप उस जनरल का नाम बता सकते हैं जिसकी फ़ौज आज भी चल रही है?”*
कुछ हैरान होते हुए मैंने जवाब दिया,
*“जी, जनरल तो बनते रहते हैं, पर ऐसा जनरल शायद ही कोई हुआ होगा जिसके नाम की फ़ौज चलती रहे ।”*
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,
*“जरा जेहन पे जोर डालें, आप जानते हैं।”*
मेरे कुछ जवाब न दे पाने पर उन्होंने अगला सवाल किया,
*“आप ज़फरनामा के बारे जानकारी रखते हैं?”*
और मेरे *‘जी, नहीं’* कहने से पहले ही वह बोले:
*“It is ‘An Epistle of Victory’ written in Persian (फारसी) and the most quoted verse of Zafarnama goes:*
*चूं कार अज़ हम्म हील-ते दर गुज़स्त,*
*हलाल अस्त बुर्दन ब-शमशीर दस्त ।*
*That is,*
*When all has been tried, yet,*
*Justice is not in sight,*
*It is then right to pick up the sword,*
*It is then right to fight.”*
बस तब तक पठानकोट पंहुच चुकी थी, सो वह मुझसे बोले:
*“’Zafarnama’ was a victory letter Guru Gobind singhji (wrote) sent to Mughal Emperor Aurangzeb, after the Battle of Chamkaur in 1705.*
और फिर बस से उतरने से पहले, हाथ मिलाकर उन्होंने मिलिट्री हिस्ट्री का एक बेहतरीन सबक देते हुए कहा:
*“गुरु गोबिंद सिंह अकेले ऐसे जनरल हुए हैं जिनकी फ़ौज आज भी चल रही है ।”*
(उन्होंने *“गुरु गोबिंद सिंह:एक संत एक सिपाही”* विषय पर Ph.d. की थी।
** जय हिन्द ।